वादी - कुछ स्वर जो राग में बार-बार आते हैं उन्हें ‘वादी’ कहते हैं.
राग में जो स्वर अन्य स्वरों से अधिक उपयोग में लाया जाता है, तथा जो स्वर राग को निश्चित रूप से प्रकट करता है एवं जो राग में अधिक महत्व का स्वर होता है, वही वादी स्वर कहलाता है इसी स्वर को जीव-स्वर भी कहते हैं. इसलिए इसको राग का राजा कहते हैं.
संवादी - ऐसे स्वर जो ‘वादी’ स्वर से कम लेकिन अन्य स्वरों से अधिक बार आएँ उन्हें ‘संवादी’ कहते हैं।
वादी स्वर से कम किन्तु अन्य सब स्वरों से जो अधिक महत्त्व रखता है उसे संवादी स्वर कहते हैं. इसका सम्बन्ध वादी स्वर से उतना ही रहता है जितना एक मंत्री का राजा से. इसलिए इसे राग का मंत्री कहते हैं.
जैसे कि राग भूपाली में और राग देशकार में एक जैसे स्वर लगते हैं- सा, रे, ग, प, ध लेकिन राग भूपाली में ग वादी है और राग देशकार में ध स्वर को वादी माना गया है। इस तरह से दोनों रागों के स्वरूप बदल जाते हैं।
राग में जो स्वर अन्य स्वरों से अधिक उपयोग में लाया जाता है, तथा जो स्वर राग को निश्चित रूप से प्रकट करता है एवं जो राग में अधिक महत्व का स्वर होता है, वही वादी स्वर कहलाता है इसी स्वर को जीव-स्वर भी कहते हैं. इसलिए इसको राग का राजा कहते हैं.
संवादी - ऐसे स्वर जो ‘वादी’ स्वर से कम लेकिन अन्य स्वरों से अधिक बार आएँ उन्हें ‘संवादी’ कहते हैं।
वादी स्वर से कम किन्तु अन्य सब स्वरों से जो अधिक महत्त्व रखता है उसे संवादी स्वर कहते हैं. इसका सम्बन्ध वादी स्वर से उतना ही रहता है जितना एक मंत्री का राजा से. इसलिए इसे राग का मंत्री कहते हैं.
जैसे कि राग भूपाली में और राग देशकार में एक जैसे स्वर लगते हैं- सा, रे, ग, प, ध लेकिन राग भूपाली में ग वादी है और राग देशकार में ध स्वर को वादी माना गया है। इस तरह से दोनों रागों के स्वरूप बदल जाते हैं।
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