आकर्ष या सुलट प्रहार:
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Sunday, January 5, 2025
Friday, April 24, 2020
कंपन की परिभाषा
द्रुतार्धमान वेगेन कम्पितं गमकं विदुः।
अर्थात द्रुतलय की आधी गति से कम्पन होने से कम्पित स्वर माना जाता है जिसे गामक भी कहते हैं।स्वरों को हिलाने से कम्पन होता है। सितार में जिस स्वर का कम्पन करना हो, उस स्वर के परदे पर बाएं हाथ की अंगुली (मध्यमा या तर्जनी) से तार को दबा कर दाहिने हाथ की तर्जनी से तर को मिजराब से ठोंक कर फिर हलके-हलके बाएं हाथ की अंगुली को हिलाने से जो स्वर उत्पन्न होता है, उसे कम्पन कहते हैं। यह एक प्रकार का Gamak गमक है।
श्रुति की परिभाषा
नित्यम् गितोपयोगित्वंभिज्ञेयत्वमप्युत।
लक्ष्यविद्भिः समादिष्टं पर्याप्तं श्रुतिलक्ष्नम्।।
- तीव्रा
- कुमुद्वती
- मंदा
- छंदोवती
- दयावती
- रंजनी
- रक्तिका
- रौद्री
- क्रोधी
- वज्रिका
- प्रसारिणी
- प्रीति
- माजनी
- क्षिति
- रक्ता
- संदीपनी
- आलापिनी
- मदन्ती
- रोहिणी
- रम्या
- उग्रा
- क्षोभिणी
Friday, March 27, 2020
राग
राग
योऽयं ध्वनिविशेषस्तु स्वरवर्णविभूषित:।
रंजको जनचित्तानां स राग: कथ्यते बुधै:।।
अर्थात् स्वरों की रचना जिसमें स्वर और वर्ण के युक्त होने के कारण मनुष्य के तित्त की रंजन या उसमें आनन्द विकसित हो, उसे राग कहते हैं।
वक्र-स्वर
वक्र-स्वर
आरोह अथवा अवरोह करने के समय जब किसी स्वर तक जाकर पुनः लौटकर उसके पीछे के स्वर पर आते हैं और फिर उसको छोड़कर आगे बढ़ते हैं तब जिस स्वर से लौटते हैं, उसी स्वर को वक्र स्वर कहते हैं।
जैसे : सा रे ग रे म
यहाँ गांधार वक्र हैं।
आरोह अथवा अवरोह करने के समय जब किसी स्वर तक जाकर पुनः लौटकर उसके पीछे के स्वर पर आते हैं और फिर उसको छोड़कर आगे बढ़ते हैं तब जिस स्वर से लौटते हैं, उसी स्वर को वक्र स्वर कहते हैं।
जैसे : सा रे ग रे म
यहाँ गांधार वक्र हैं।
पकड़-स्वर
पकड़-स्वर
ऐसे स्वर-समुदाय जिससे किसी राग को पहचाना जाता है, उसे पकड़ कहते हैं, जैसे : "ग रे नि रे सा" कहने से यमन राग का बोध होता है।
ऐसे स्वर-समुदाय जिससे किसी राग को पहचाना जाता है, उसे पकड़ कहते हैं, जैसे : "ग रे नि रे सा" कहने से यमन राग का बोध होता है।
तान
तान
गाने या बजाने में जो सरगम नियमित रूप से ताल में गाये-बजाये जाते हैं, उन्हीं तानों और सरगमों को सितार पर दिरदादिर दारा आदि बोल के सहारे बजाने से तोड़े बनते हैं। तान दो तरह के होते हैं- शुद्ध तान और कूट तान।
येन विस्तार्यते रागः स तानः कथ्यते बुधैः ।
शुद्धकूटविभेदेन द्विविधास्ते समीरिताः ।।
गाने या बजाने में जो सरगम नियमित रूप से ताल में गाये-बजाये जाते हैं, उन्हीं तानों और सरगमों को सितार पर दिरदादिर दारा आदि बोल के सहारे बजाने से तोड़े बनते हैं। तान दो तरह के होते हैं- शुद्ध तान और कूट तान।
झाला
झाला
सितार में चिकारी के तार पर कनिष्टिका या तर्जनी "रा रा" बजने को झाला कहते हैं। इसके कुछ अलग बोल हैं। यह ठीक भ्रमर के गुंजन के सामान मीठा और अच्छा मालूम होता है और नृत्य का आनंद मिलता है।
सितार में चिकारी के तार पर कनिष्टिका या तर्जनी "रा रा" बजने को झाला कहते हैं। इसके कुछ अलग बोल हैं। यह ठीक भ्रमर के गुंजन के सामान मीठा और अच्छा मालूम होता है और नृत्य का आनंद मिलता है।
गत
गत
बोलो की बंदिश जो स्वर और ताल में बंधी हो, उसे गत कहते हैं। इन बोलों के कुछ भी मायने नहीं होते परन्तु हस्त चालन द्वारा निर्देशित स्वर और ताल के मिश्रण को सुनने में आनंद आता है।
सितार पर स्वरों के सहारे और ताल में बंधी हुई दा दिर दा रा, दिरदादिरदारा आदि बोलों की बंदिश जो राग और ताल पर बंधी होती है, उसे गत कहते हैं।
बोलो की बंदिश जो स्वर और ताल में बंधी हो, उसे गत कहते हैं। इन बोलों के कुछ भी मायने नहीं होते परन्तु हस्त चालन द्वारा निर्देशित स्वर और ताल के मिश्रण को सुनने में आनंद आता है।
सितार पर स्वरों के सहारे और ताल में बंधी हुई दा दिर दा रा, दिरदादिरदारा आदि बोलों की बंदिश जो राग और ताल पर बंधी होती है, उसे गत कहते हैं।
Thursday, February 27, 2020
जाति किसे कहते हैं? जातियां कितने प्रकार की हैं, समझाइये।
जाति - इससे राग में प्रयोग किये जानेवाले स्वरों की संख्या का ज्ञान होता है। किसी भी राग में कम से कम ५ और अधिक से अधिक ७ स्वर प्रयोग किये जाते हैं। स्वरों की संख्या की दृस्टि से मुख्य तीन प्रकार के राग हो सकते हैं:
- ५ स्वर वाले राग - ऐसे रागों की जाति को औडव कहा जाता है।
- ६ स्वर वाले राग - ऐसे रागों की जाति को षाडव कहा जाता है।
- ७ स्वर वाले राग - ऐसे रागों की जाति को सम्पूर्ण कहा जाता है।
राग में आरोह एवं अवरोह दोनों आवश्यक होते हैं। कुछ रागों में यह देखा जाता है की आरोह एवं अवरोह में लगने वाले स्वरों की संख्या सामान नहीं होती। जैसे - राग खमाज के आरोह में ६ और अवरोह में ७ स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इस तरह अन्य राग भी हैं, जिनमे यदि आरोह में ५ स्वर प्रयोग किये जाते हैं तो अवरोह में ६ अथवा ७ स्वर प्रयोग किये जाते हैं।
इस प्रकार रागों की तीन जातियों को मिलकर ३x ३=९ जातियां होती हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं:
- औडव - औडव : आरोह एवं अवरोह दोनों में ५-५ स्वर।
- औडव - षाडव : आरोह में ५ एवं अवरोह में ६ स्वर।
- औडव - सम्पूर्ण : आरोह में ५ एवं अवरोह में ७ स्वर।
- षाडव - षाडव : आरोह एवं अवरोह दोनों में ६-६ स्वर।
- षाडव - औडव : आरोह में ६ एवं अवरोह में ५ स्वर।
- षाडव - सम्पूर्ण : आरोह में ६ एवं अवरोह में ७ स्वर।
- सम्पूर्ण - सम्पूर्ण : आरोह एवं अवरोह दोनों में ७-७ स्वर।
- सम्पूर्ण - षाडव : आरोह में ७ एवं अवरोह में ६ स्वर।
- सम्पूर्ण - औडव : आरोह में ७ एवं अवरोह में ५ स्वर।
राग किसे कहते हैं? राग के नियम अथवा लक्षण बताइये।
राग - स्वरों की वह सुन्दर रचना जो कानों को अच्छी लगे उसे राग कहते हैं. आजकल राग गायन हीं प्रचार में है. संगीत रत्नाकर में राग की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है
'स्वर और वर्ण से विभूषित ध्वनि जो मनुष्य के मन का रंजन करे, राग कहलाता है'
राग में निम्न बातों का होना आवश्यक है:
- राग के नियम - प्रत्येक राग में रञ्जकता अर्थात मधुरता आवश्यक है, अर्थात कानों को अच्छा लगना आवश्यक है।
- राग में कम से कम ५ और अधिक से अधिक ७ स्वर होने चाहिए।
- प्रत्येक राग किसी न किसी थाट से उत्पन्न माना गया है।
- किसी भी राग में षडज अर्थात सा कभी-भी वर्जित नहीं होता, क्यूंकि यह सप्तक का आधार स्वर होता है।
- प्रत्येक राग में म और प में से कम से कम एक स्वर अवश्य होना चाहिए। दोनों स्वर एक साथ वर्जित नहीं हो सकते। यदि पंचम के साथ शुद्ध म भी वर्जित हो तो तीव्र-म अवश्य रहना चाहिए।
- प्रत्येक राग में आरोह अवरोह, वादी-सम्वादी, पकड़, समय आदि होना चाहिए।
- किसी भी राग में एक स्वर का दोनों रूप अर्थात शुद्ध-कोमल एक साथ नहीं प्रयोग होना चाहिए।
Thursday, February 14, 2019
कण : परिभाषा
किसी दूसरे को स्पर्श कर के जब कोई स्वर बजाया जाता है तब उस किये हुए स्वर को कण कहा जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं:
१. निचे के स्वर से ऊपर के स्वर तक जाते हैं:
रे ग प
ग, म, सां
२. यह कण ऊपर के स्वर को लेकर नीचे के स्वर पर आने से होता है:
ग म नि
सा, ग, प
Sunday, February 10, 2019
थाट : परिभाषा
थाट स्वरों की एक विशेष रचना होती है जिसमे से राग की बुनियाद बनती है. थाट के सम्बन्ध में निम्नलिखित बाते ध्यान रखी जाति है -
१. थाट में हमेशा सातों स्वर होते हैं,
२. थाट में रंजकता होनी आवश्यक नहीं है
३. थाट के लक्षण बताने के लिए अवरोह की कोई आवश्यकता नहीं है.
Saturday, February 9, 2019
वर्ण : परिभाषा
गाने की प्रत्यक्ष क्रिया या स्वरों की विविध चलन को वर्ण कहते हैं. ये चार प्रकार के होते हैं। अभिनव राग मंजरी में कहा गया है, "गान क्रियोच्यते वर्ण:" अर्थात् गाने की क्रिया को वर्ण कहते हैं।
१. स्थाई वर्ण - जब कोई स्वर एक से अधिक बार उच्चारित किया जाता है तो उसे स्थायी वर्ण कहते हैं, जैसे - रे रे, ग ग ग, म म म आदि।
२. आरोही वर्ण - स्वरों के चढ़ते हुये क्रम को आरोही वर्ण कहते हैं जैसे- सा रे म ग प ध नी
३. अवरोही वर्ण - स्वरों के उतरते हुये क्रम को अवरोही वर्ण कहते हैं जैसे - नि ध प म ग रे सा
- ४. संचारी वर्ण - उपर्युक्त तीनों वर्णों के मिश्रित रूप को संचारी वर्ण कहते हैं । इसमें कभी तो कोई स्वर ऊपर चढ़ता है तो कभी कोई स्वर बार-बार दोहराया जाता है। दूसरे शब्दों में संचारी वर्ण में कभी आरोही, कभी अवरोही और कभी स्थाई वर्ण दृष्टिगोचर होता है जैसे - सा सा रे ग म प प म ग रे सा।
विवादी : परिभाषा
जिस स्वर को राग में लगाने से राग का स्वरुप बिगड़ जाये, अर्थात राग में न प्रयोग किए जाने वाले स्वरों को विवादी कहते हैं. इसे राग का शत्रु भी कहते हैं. प्रचार में यह वर्ज्य या वर्जित स्वर कहलाता है.
कभी-कभी राग की सुंदरता बढ़ाने के लिए विवादी स्वर का क्षणिक प्रयोग भी किया जाता है ऐसा करते समय बड़ी सावधानी की आवश्यकता होती है अन्यथा राग के बिगड़ने की संभावना रहती है।
१. विवादी स्वर का उपयोग उस समय करना चाहिए जबकि राग के रंजकता में वृद्धि हो। केवल प्रयोग के लिए प्रयोग न करना चाहिए अन्यथा राग हानि होगी। बिहारग में तीव्र म विवादी स्वर है विवादी स्वर के प्रयोग करने से राग हानि नहीं होती बल्कि उसके गलत प्रयोग करने से राग हानि अवश्य होती है।
२. विवादी स्वर का अल्प प्रयोग होना चाहिए। ऐसा न करने से विवादी अनुवादी हो जाएगा।
३. विवादी के प्रयोग से राग का मूल स्वरूप किसी भी अंश में नहीं बिगड़ना चाहिए।
कभी-कभी राग की सुंदरता बढ़ाने के लिए विवादी स्वर का क्षणिक प्रयोग भी किया जाता है ऐसा करते समय बड़ी सावधानी की आवश्यकता होती है अन्यथा राग के बिगड़ने की संभावना रहती है।
१. विवादी स्वर का उपयोग उस समय करना चाहिए जबकि राग के रंजकता में वृद्धि हो। केवल प्रयोग के लिए प्रयोग न करना चाहिए अन्यथा राग हानि होगी। बिहारग में तीव्र म विवादी स्वर है विवादी स्वर के प्रयोग करने से राग हानि नहीं होती बल्कि उसके गलत प्रयोग करने से राग हानि अवश्य होती है।
२. विवादी स्वर का अल्प प्रयोग होना चाहिए। ऐसा न करने से विवादी अनुवादी हो जाएगा।
३. विवादी के प्रयोग से राग का मूल स्वरूप किसी भी अंश में नहीं बिगड़ना चाहिए।
अनुवादी : परिभाषा
वादी और संवादी को छोड़कर बाद की नियमित स्वरों को अनुवादी कहते हैं. इन्हें राग का सेवक कहते हैं.
उदाहरण के लिए भैरवी राग में म-सा के अतिरिक्त जो क्रमशः वादी-संवादी हैं, राग के शेष स्वर अनुवादी कहलाते हैं। अनुवादि स्वरों को अनुचर या सेवक कहा गया है।
राग यमन में वादी ग, संवादी नी और शेष स्वर - सा रे तिव्र-म, प, ध स्वर अनुवादी हैं।
राग खमाज में ग-वादी, नी-संवादी और शेष स्वर - सा, रे, ग, प और ध अनुवादी हैं।
The notes in a raga that neither Vadi nor, Samvadi are called Anuvadi notes. They are often called companion notes.
उदाहरण के लिए भैरवी राग में म-सा के अतिरिक्त जो क्रमशः वादी-संवादी हैं, राग के शेष स्वर अनुवादी कहलाते हैं। अनुवादि स्वरों को अनुचर या सेवक कहा गया है।
राग यमन में वादी ग, संवादी नी और शेष स्वर - सा रे तिव्र-म, प, ध स्वर अनुवादी हैं।
राग खमाज में ग-वादी, नी-संवादी और शेष स्वर - सा, रे, ग, प और ध अनुवादी हैं।
The notes in a raga that neither Vadi nor, Samvadi are called Anuvadi notes. They are often called companion notes.
संचारी : परिभाषा
गाने के तीसरे पद को संचारी कहते हैं. इस पद से स्थाई के ऊपर वाले भाग का विशेष बोध होता है.
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