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Sunday, February 16, 2020
Friday, January 25, 2019
तन्त्र वाद्य - चतुर्थ वर्ष (सीनियर डिप्लोमा)
चतुर्थ वर्ष (सीनियर डिप्लोमा)
क्रियात्मक
- पिछले वर्षों के पाठ्यक्रमों का विशेष अभ्यास. स्वर-ज्ञान, लय-ज्ञान और राग-ज्ञान में निपुणता.
- वाद्य मिलाने का पूर्ण अभ्यास.
- अंकों या स्वरों के सहारे ताली देकर विभिन्न लयों का प्रदर्शन जैसे-दुगुन (१ मात्रा में २ मात्रा बोलना), तिगुन (१ में ३), चौगुन (१ में ४), आड़ (२ में ३), आड़ का उल्टा (३ में २), पौनगुन (४ में ३), सवागुन (४ में ५)
- गिटकिरी, मुर्की, खटका, कण, कृन्तन, जमजमा, लाग-डाट, घसीट आदि बजने का अभ्यास. कुछ कठिन मींड जैसे = जमजमा की मींड, मुर्की की मींड, गिटकिरी की मींड, सूत की मींड आदि निकालना.
- सुन्दर आलाप, जोड़ और झाले का विशेष अभ्यास.
- केदार, पटदीप, जैजैवंती,पुरिया, मारवा, कामोद, दरबारी-कान्हड़ा,, अड़ाना तथा देशकार रागों का पूर्ण-ज्ञान और प्रत्येक में एक-एक राजखानी गत या छोटा ख्याल सुन्दर आलाप, कठिन तान, तोड़ों, और झाला सहित.
- केदार, तोड़ी, मुल्तानी, पुरिया और दरबारी कान्हड़ा रागों का पूर्ण आलाप-जोड़ तथा एक-एक मसितखानी गत या बड़ा ख्याल कठिन और सुन्दर तान तोड़ों सहित.
- टप्पा और ठुमरी के ठेकों का साधारण ज्ञान. जत और आड़ा-चारताल का पूर्ण ज्ञान और इनको विभिन्न लयों में ताल देकर बोलना.
- बजाकर रागों में समता-विभिन्नता दिखाना.
- छोटे-छोटे स्वर-समूहों द्वारा राग पहिचान.
शास्त्र
- राग-रागिनी पद्धति, तान के विभिन्न प्रकारों का विस्तृत वर्णन विवादी स्वर का प्रयोग, निबद्ध गान के प्राचीन प्रकार (प्रबंध-वास्तु आदि) धातु, अनिबाध गान, अध्वदर्शक स्वर.
- २२ श्रुतियों का स्वरों में विभाजन (आधुनिक और प्राचीन-मतों का तुलनात्मक अध्ययन), खींचे हुए तार की लम्बाई का नाद के ऊँचे-निचेपन से सम्बन्ध.
- छायालग और संकीर्ण राग, परमल प्रवेशक राग, रागों का समय-चक्र, कर्नाटकी और हिन्दुस्तानी सन्गिईत पद्धतियों के स्वरों की तुलना. राग का समय निश्चित करने में वादी-संवादी, पूर्वांग, उत्तरांग और अध्वदर्शक-स्वर का महत्व.
- उत्तर भारतीय सप्तक से ३२ थाटों की रचना. आधुनिक थाटों के प्राचीन नाम, अल्पत्व-बहुत्व, तिरोभाव तथा आविर्भाव.
- रागों का तुलनात्मक अध्ययन, राग का स्वर-विस्तार लिखने तथा राग पहिचान में निपुणता.
- विभिन्न तालों की दुगुन, तिगुन तथा चौगुन प्रारंभ करने का स्थान गणित द्वारा निकलने की विधि विभिन्न लायकारियों को ताल-लिपि में लिखने का अभ्यास जैसे-दुगुन (१ मात्रा में २ मात्रा बोलना), तिगुन (१ में ३), चौगुन (१ में ४), आड़ (२ में ३), आड़ का उल्टा (३ में २), पौनगुन (४ में ३), सवागुन (४ में ५)
- विष्णु दिगंबर और भातखंडे दोनों स्वर्लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन. दोनों स्वर्लिपियों में आलाप, गत, तान, तोड़ा, झाला लिखने के अभ्यास.
- विभिन्न भारतीय वाद्यों (तत्, वितत्, घन और सुषिर) का विस्तृत वर्णन और उनका इतिहास. वाद्यों को बजने की विभिन्न बैठक तथा उनके गुण और दोष. वाद्य मिलाने के विभिन्न प्रकार. मसितखानी और रजाखानी गत बजाने के नियम. विभिन्न तन्द्रा वाद्यों (सितार, सरोद, इसराज, बेला, सारंगी, वीणा) की विशेषताएं.
- निम्नलिखित शब्दों की परिभाषाएं - लाग-डाट, पुकार, लड़गुथाव, छूट, तार-परन, कृन्तन.
- भरत, अहोबल, व्यंकटमखी तथा मानसिंह तोमर का जीवन परिचय तथा संगीत कार्य.
तन्त्र वाद्य - तृतीय वर्ष
तृतीय वर्ष (तन्त्र वाद्य)
क्रियात्मक परीक्षा १०० अंकों की तथा शास्त्र का एक प्रश्न-पत्र ५० अंकों का. पिछले वर्षों का सम्पूर्ण पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है.
क्रियात्मक
- प्रथम और द्वितीय वर्षों की पाठ्यक्रम की विशेष जानकारी और तैयारी.
- स्वर-ज्ञान में विशेष उन्नति.
- अन्य कठिन अलंकारों और तानों को विभिन्न लयकारियों (ठाह, दून, तिगुन, और चौगुन) में विभिन्न बोलों में और तीनों सप्तकों में पूर्ण अभ्यास. आड़-लय का केवल प्रारंभिक ज्ञान.
- वाद्य मिलाने का प्रारंभिक अभ्यास.
- मींड, सूत, घसीट, जमजमा, खटका, मुर्की, स्पर्श, स्वर आदि निकालने का आरंभिक अभ्यास. प्रथम और द्वितीय वर्ष के रागों के स्वर-विस्तार में इन सब चीजों का साधारण प्रयोग.
- बागेश्री, मालकोस, जौनपुरी, तथा पूर्वी, रागों का साधारण आलाप, जोड़, और एक-एक विलंबित गत मसितखानी अथवा बड़ा-ख्याल (ख्याल-अंग बजाने वालों के लिए) दून और चौगुन लयों में सुन्दर तान, तोड़ों, सहित. हाथ की सफाई और तैयारी पर विशेष ध्यान रखना चाहिए.
- पूर्वी, तोड़ी, मुल्तानी, दुर्गा, कलिंङ्गड़ा, तिलङ, पीलू, तिलक कामोद, और सोहिनी रागों का पूर्ण-ज्ञान, स्वर विस्तार (साधारण और मींड-सूत द्वारा) और प्रत्येक में एक-एक रजाखानी-गत अथवा छोटा-ख्याल सुन्दर तान, तोड़ों और झाला सहित.
- दीपचंदी, धमार, झुमरा तथा तिलवाड़ा तालों के ठेकों को ठाह, दुगुन, तिगुन और चौगुन लयों में बोलना.
- राग पहचान में निपुणता.
शास्त्र
- प्रथम और द्वितीय वर्षों के कुल पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत ज्ञान, २२ श्रुतियों का सात शुद्ध स्वरों में विभाजन (आधुनिक मत), आन्दोलन की चौड़ाई और उसका नाद से छोटे-बड़ेपन से सम्बन्ध, थाट और राग के विशेष नियम. श्रुति और नाद में सूक्ष्म भेद. व्यंकटमखी के ७२ मेलों की गणितानुसार रचना और एक थाट से ४८४ रागों की उत्पत्ति. स्वर और समय के अनुसार रागों के तीन वर्ग (रे-ध कोमल वाले राग, रे-ध शुद्ध वाले राग, और ग-नि कोमल वाले राग), संधिप्रकाश राग, तानों के प्रकार.
- वाद्य सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दों एवं विषयों का पूर्ण ज्ञान, तरब, जोड़, अनुलोम तथा विलोम, मींड, गमक, सूत, घसीट, मुर्की, गिटकिरी, खटका, तंत्र, तन्त्रकारों के गुण-दोष, कस्बी तथा अताई.
- रागों का पूर्ण परिचय एवं तुलनात्मक अध्ययन स्वर-विस्तार सहित.
- आलाप, गत, तान तोड़ा, झाला आदि को स्वरलिपि में लिखने का पूर्ण अभ्यास.
- इस वर्ष तथा पिछले वर्षों के तालों का पूर्ण ज्ञान. उनके ठेकों को दुगुन, तिगुन और चौगुन लयों में ताल-लिपि में लिखना. किसी ताल अथवा गत या गीत को दुगुन आदि आरंभ करने के स्थान को भिन्न-भिन्न स्थानों द्वारा निकालने की रीति.
- कठिन स्वर-समूहों द्वारा राग पहिचान.
- भातखंडे तथा विष्णु दिगंबर स्वर-लिपि पद्धतियों का पूर्ण-ज्ञान.
- शारङदेव तथा स्वामी हरिदास को संक्षिप्त जीवनियां तथा उनके संगीत कार्यों का परिचय.
Sunday, December 11, 2016
Tuesday, September 13, 2016
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