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Saturday, December 28, 2019

तानसेन - जीवनी

तानसेन का असली नाम तन्ना मिश्र था और पिता का नाम मकरंद पांडे। कुछ लोग पांडे जी को मिश्र भी कहते थे। तानसेन की जन्मतिथि के विषय में अनेक मत हैं। अधिकांश विद्वानों के मतानुसार उनका जन्म 1532 ईसवी में ग्वालियर से 7 मील दूर बेहट ग्राम में हुआ था। उनके जन्म के विषय में यह किवदंती है कि बहुत दिनों तक मकरन्द पांडे संतानहीन थे। अतः वे बहुत चिंतित रहा करते थे। मोहम्मद गौस नामक फकीर के आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम तन्ना रखा गया। अपने पिता के एकमात्र संतान होने के कारण उनका पालन पोषण बड़े लाड़ प्यार में हुआ। फलस्वरूप अपनी बाल्यावस्था में वे बड़े नटखट और उद्दंड रहे। प्रारंभ से ही तन्ना में दूसरों की नकल करने की बड़ी क्षमता थी। बालक तन्ना पशु पक्षियों तथा जानवरों की विभिन्न बोलियों की सच्ची नकल करता था और नटखट प्रकृति का होने के कारण हिंसक पशुओं की बोली से लोगों को डराया करता था। इसी बीच स्वामी हरिदास से उनकी भेंट हो गई।

मिलने की भी एक मनोरंजक कथा है। एक बार स्वामी जी अपनी मंडली के साथ पास के जंगल से गुजर रहे थे। नटखट तन्ना ने एक पेड़ की आड़ लेकर शेर की आवाज निकालकर सबको डरा दिया। स्वामी हरिदास उनकी इस प्रतीभा से अत्यधिक प्रभावित हुए और उनके पिता से तानसेन को संगीत सिखाने के लिए मना लिया और अपने साथ तानसेन को वृंदावन ले गए।

इस प्रकार तानसेन स्वामी हरिदास के साथ रहने लगे और 10 वर्ष तक शिक्षा प्राप्त करते रहें अपने पिता की अस्वस्थता सुनकर   तानसेन अपनी मातृभूमि ग्वालियर चले गये। कुछ दिनों के बाद उनके पिता ने तानसेन को बुलाकर कहा कि तुम्हारा जन्म मुहम्मद गौस के आशीर्वाद स्वरुप हुआ है। अत: उनकी आज्ञा की अवहेलना कभी न करना। तब स्वामी हरिदास से आज्ञा लेकर तानसेन मुहम्मद गौस के पास रहने  लगे। वहां कभी-कभी ग्वालियर की रानी मृगनयनी का गाना सुनने के लिए जाया करते थे। वहां उसकी दासी हुसैनी की सुन्दरता और संगीत ने तानसेन को अपनी ओर आकर्षित किया।  तानसेन के चार पुत्र हुए, सूरत सेन, शरतसेन, तरंगसेन, बिलास खां और सरस्वती नाम की एक पुत्री।

जब तानसेन एक अच्छे गायक हो गए तो रीवानरेश रामचंद्र ने उन्हें राज्य गायक बना लिया। महाराज रामचंद्र और अकबर में घनिष्ट मित्रता थी। महाराज रामचंद्र ने अकबर को प्रशन्न करने के लिए गायक तानसेन को उन्हें उपहार स्वरूप  भेंट कर दिया। अकबर स्वयं भी संगीत का प्रेमी था। वह उन्हें पाकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ और अपने नवरत्नों में उन्हें शामिल कर लिया। धीरे-धीरे अकबर तानसेन को बहुत मानने लगा फलस्वरूप दरबार के अन्य गायक उनसे जलने लगे। उन लोगों ने तानसेन को खत्म करने के लिये एक युक्ति निकाली। सभी गायकों ने अकबर बादशाह से प्रार्थना किया कि तानसेन से दीपक राग सुना जाए और यह देखा जाए कि दीपक राग में कितना प्रभाव है। तानसेन के अतिरिक्त को दूसरा गायक इसे गा नहीं सकेगा यह बात बादशाह के दिमाग में जम गई। उसने तानसेन को दीपक राग गाने को बाध्य किया। तानसेन अकबर को बहुत समझाया कि दीपक राग के गाने का परिणाम बहुत बुरा होगा किंतु बादशाह के सामने उन्हों दीपक राग गाने के लिये बाध्य होना पड़ा। दीपक राग गीते हीं गर्मी बढ़ने लगी और चारों ओर से मानो अग्नि की लपटें निकलने लगी। श्रोतागण तो गर्मी के मारे भाग निकले किंतु तानसेन का शरीर प्रचंड गर्मी से जलने लगा। उसकी गर्मी केवल मेघ राग से समाप्त हो सकती थी। कहा जाता है कि तानसेन की पुत्री सरस्वती ने राग मेघ गाकर अपने पिता की जीवन रक्षा की। बादशाह को अपनी हठ पर बड़ा पश्चाताप हुआ।

बैजू बावरा तानसेन का समकालीन था। कहा जाता है कि एक बार दोनों गायकों में प्रतियोगिता हुई और तानसेन की हार हुई। इसके पूर्व तानसेन ने घोषणा करा दी थी कि उसके अतिरिक्त राज्य में कोई भी व्यक्ति गाना न गाये और जो गाएगा तानसेन के साथ उसकी प्रतियोगिता होगी। जो हारेगा उसे उसी समय मृत्यु दंड मिलेगा। कोई गायक उसे हरा नहीं सका। अंत में बैजू बावरा ने उसे परास्त किया। शर्त के अनुसार तानसेन को मृत्युदण्ड मिलना चाहिए था किंतु बैजू बावरा ने उसे क्षमा कर अपने विशाल ह्रदय का परिचय दिया।

तानसेन ने अनेक रागों की रचना की जैसे दरबारी कान्हड़ा, मियां की सारंग, मियां की तोड़ी, मियां मल्हार आदि। कहा जाता है कि  तानसेन ने बाद में मुसलमान धर्म स्वीकार कर लिया। उसने ऐसा क्यों किया, इस विषय में विद्वानों के अनेक मत हैं। कुछ का कहना है कि गुरु की आज्ञा से वह मुसलमान हो गए और कुछ का कहना है कि अकबर की पुत्री से उसकी विवाह हुई थी इसलिए उसने मुसलमान धर्म स्वीकार कर लिया। कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि तानसेन मुसलमान हुए ही नहीं। उसने फकीर गुलाम गौस की स्मृति में नवीन रागों के नाम के आगे मियां शब्द जोड़ दिया जैसे मियां मल्हार आदि सन  1585 ईसवी में दिल्ली में तानसेन की मृत्यु हुई और ग्वालियर में गुलाम गौस के कब्र के पास उनकी समाधि बनाई गई।

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