तान
गाने या बजाने में जो सरगम नियमित रूप से ताल में गाये-बजाये जाते हैं, उन्हीं तानों और सरगमों को सितार पर दिरदादिर दारा आदि बोल के सहारे बजाने से तोड़े बनते हैं। तान दो तरह के होते हैं- शुद्ध तान और कूट तान।
येन विस्तार्यते रागः स तानः कथ्यते बुधैः ।
शुद्धकूटविभेदेन द्विविधास्ते समीरिताः ।।
गाने या बजाने में जो सरगम नियमित रूप से ताल में गाये-बजाये जाते हैं, उन्हीं तानों और सरगमों को सितार पर दिरदादिर दारा आदि बोल के सहारे बजाने से तोड़े बनते हैं। तान दो तरह के होते हैं- शुद्ध तान और कूट तान।
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