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Wednesday, March 22, 2017

भारत रत्न  बिस्मिल्लाह खाँ - जीवनी

जन्मतिथि         21 March 1916
निधन              21 August 2006
जन्मस्थान        डुमराँवबिहार
पिता            पैगम्बर खाँ 
माता            मिट्ठन बाई
प्रसिद्ध शहनाई वादक ,  भारत रत्न  बिस्मिल्लाह खाँ के जयंती पर सादर नमन!
हमारी संस्कृति से जुडी इस कला विद्या को बचाने की जरूरत.....वे गॉव डुमरॉव के रहने वाले थे ,उस्ताद विश्मिल्ला खॉं साहब...बाद मे अपने बच्चों के परवरिश के लिए बनारस चले गये....



प्रारंभिक जीवन
बिस्मिल्ला खाँ का जन्म बिहारी मुस्लिम परिवार में पैगम्बर खाँ और मिट्ठन बाई के यहाँ बिहार के डुमराँव के ठठेरी बाजार के एक किराए के मकान में हुआ था। 

उनके बचपन का नाम क़मरुद्दीन था। वे अपने माता-पिता की दूसरी सन्तान थे। चूँकि उनके बड़े भाई का नाम शमशुद्दीन था अत: उनके दादा रसूल बख्श ने कहा-"बिस्मिल्लाह!" जिसका मतलब था "अच्छी शुरुआत! या श्रीगणेश" अत: घर वालों ने यही नाम रख दिया। और आगे चलकर वे "बिस्मिल्ला खाँ" के नाम से मशहूर हुए। 

उनके खानदान के लोग दरवारी राग बजाने में माहिर थे जो बिहार की भोजपुर रियासत में अपने संगीत का हुनर दिखाने के लिये अक्सर जाया करते थे। उनके पिता बिहार की डुमराँव रियासत के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरवार में शहनाई बजाया करते थे।

6 साल की उम्र में बिस्मिल्ला खाँ अपने पिता के साथ बनारस आ गये। वहाँ उन्होंने अपने चाचा अली बख्श 'विलायती' से शहनाई बजाना सीखा। उनके उस्ताद चाचा 'विलायती' विश्वनाथ मन्दिर में स्थायी रूप से शहनाई-वादन का काम करते थे।


शेहनाई जैसे संगीत वाद्य यंत्र को प्रसिद्ध बनाने में इन्होने अत्यंत हीं मत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1937 में कलकत्ता ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ्रेंस में शहनाई बजाया था।
उस समय शहनाई बजाने में उनका मुकाबला कोई और नही कर सकता था. उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का उस समय शहनाई बजाने में एकाधिकार था। शहनाई और बिस्मिल्लाह उस समय दोनों ही एक-दूजे के पर्यायी बने हुए थे।
भारतीय आज़ादी के बाद बिस्मिल्लाह खान भारत के प्रसिद्ध क्लासिकल संगीतकारों में से एक थे और साथ ही भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता का एक जीता-जागता उदाहरण थे। उन्होंने दुनिया में कई जगहों पर, कई देशो में अपने शहनाई की धुन से लोगो को मंत्रमुग्ध किया था।
बिस्मिल्लाह खान साहब शहनाई को अपनी बेगम की तरह चाहते थे और अपने काम की भगवान की तरह पूजा करते थे। अपने संगीत के गुणों से लोगो में शांति, एकता और प्यार फ़ैलाने के लिये उस्ताद बिस्मिल्लाह खान प्रसिद्ध थे।
1947 में भारतीय आज़ादी की पहले श्याम को खान को लाल किले पर अपनी कला का प्रदर्शन करने का अमूल्य अवसर भी मिला था। इसके साथ ही 26 जनवरी 1950 को भी उन्होंने भारतीय गणतंत्र दिवस की श्याम को लाल किले पर राग काफी पर प्रदर्शन भी किया था।
बिस्मिल्लाह खान साहब का फिल्मो से गहरा संबंध था। उन्होंने सत्यजित राय की फिल्म जलसाघर में भी काम किया है और 1959 में आई फिल्म गूँज उठी शहनाई में उन्होंने शेहनाई की धुन भी दी है।
1967 की फिल्म दी ग्रेजुएट में एक पोस्टर भी था जिसमे बिस्मिल्लाह खान के साथ 7 संगीतकारों को भी दर्शाया गया था।
बिस्मिल्लाह खान साहब को जब बुखार हुआ तो उन्हें इलाज के लिये वाराणसी के हेरिटेज हॉस्पिटल में 17 अगस्त 2006 को भारती किया गया। इसके चार दिन बाद ही 21 अगस्त 2006 को उनकी मृत्यु हो गयी। भारत सरकार ने उनकी मृत्यु के दिन को राष्ट्रिय शोक घोषित किया था। उनके शरीर को उनकी शेहनाई के साथ ही वाराणसी में फातेमें मैदान में एक नीम के पेड़ के निचे भारतीय आर्मी द्वारा 21 तोफ़ो की सलामी के साथ दफनाया गया था।
बिस्मिल्ला ख़ाँ के अवार्ड एवं उपलब्धियाँ – Bismillah Khan Awards
  • संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (1956)
  • पद्म श्री (1961)
  • ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ्रेंस, अल्लाहाबाद में बेस्ट परफ़ॉर्मर का पुरस्कार (1930)
  • ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ्रेंस में तीन मेडल्स, कलकत्ता (1937)
  • पद्म भुषण (1968)
  • पद्म विभूषण (1980)
  • संगीत नाटक अकादमी शिष्यवृत्ति (1994)
  • रिपब्लिक ऑफ़ ईरान द्वारा तलार मौसिकुई (1992)
  • Tansen Award by Govt. of Madhya Pradesh.
  • भारत रत्न (2001)
Regards : http://www.gyanipandit.com/bismillah-khan-biography/

 वे काशी के बाबा विश्वनाथ मन्दिर में जाकर तो शहनाई बजाते ही थे इसके अलावा वे गंगा किनारे बैठकर घण्टों रियाज भी किया करते थे। उनकी अपनी मान्यता थी कि उनके ऐसा करने से गंगा मइया प्रसन्न होती हैं।