Search here

Wednesday, May 16, 2018

नाद की विशेषताये

नाद की विशेषताएं

नाद की मुख्य तीन विशेषताएं हैं - 

१. नाद की ऊँचाई-निचाई
२. नाद का छोटा-बड़ापन
३. नाद की जाति अथवा गुण

१. नाद की ऊँचाई-निचाई

गाते बजाते समय हम यह अनुभव करते हैं कि बारहों स्वर एक दुसरे से ऊँचे नीचे हैं. स्वर अथवा नाद की ऊंचाई-निचाई आन्दोलन-संख्या पर आधारित होती है. अधिक आन्दोलन-संख्या वाला स्वर ऊँचा और इसके विपरीत कम आन्दोलन वाला स्वर नीचा होता है. गाते-बजाते समय ऐसा सहज हीं अनुभव की जा सकती है कि सा से ऊँचा ग होता है, जिसका अर्थ है कि ग की आन्दोलन सा से अधिक होगी. इसी प्रकार ग से नीचा रे होता है. अतः रे की आन्दोलन ग से कम होगी.

२. नाद का छोटा-बड़ापन

क्रियात्मक संगीत में यह स्वतः हीं अनुभव किया जा सकता है कि धीरे से उच्चारण करने पर स्वर थोड़ी दूर तक और जोर से की गई उच्चारण अधिक दुरी तक सुनाई पड़ता है. इसे संगीत में नाद का छोटा-बड़ापन कहते हैं. छोटा नाद कम दुरी तक और धीमा सुनाई पड़ता है और बड़ा नाद अधिक दूरी तक स्पष्ट सुनाई पड़ता है. तानपूरे के तार को धीरे से आघात करने में तार के आन्दोलन की चौड़ाई कम होगी अर्थात तार कम दूरी तक ऊपर-निचे कम्पन्न करेगा और फलस्वरूप छोटा नाद उत्पन्न होगा. इसके विपरीत तार को जोर से छेड़ने से तार के आन्दोलन की चौड़ाई अधिक होगी और बड़ा नाद उत्पन्न होगा. इस प्रकार स्पस्ट है की नाद का छोटा-बड़ापन आन्दोलन की चौड़ाई पर निर्भर है.

३. नाद की जाति अथवा गुण


प्रत्येक वाद्य का स्वर एक दूसरे से अलग होता है. जैसे कि सितार का स्वर बेला से और बेला का स्वर हारमोनियम से और हारमोनियम का स्वर सरोद से भिन्न होता है. इस लिए दूर से आती हुई संगीत ध्वनि को हम पहचान लेते हैं कि ध्वनि किस वाद्य की है. विभिन्न वाद्यों के स्वरों में भिन्नता होते का कारण यह है कि प्रत्येक वाद्य के सहायक नादों की संख्या, उनका क्रम और प्राबल्य एक दूसरे से भिन्न होता है. इसी को नाद की जाति अथवा गुण कहते हैं. ऐसा मानना है कि कोई भी नाद अकेला उताण नहीं होता, उसके साथ कुछ अन्य नाद भी उत्पन्न हुआ करते हैं, जिन्हें केवल अनुभवी कान हीं सुन सकते हैं. ऐसे स्वतः उत्पन्न होने वाले स्वरों को सहायक नाद कहते हैं. सहायक नादों की संख्या, क्रम और प्राबल्य पर नाद की जाति आधारित होती है.

5 comments: