Bhajan - Mera jeevan tere hawale by Mr. Ashok Kumar, PGT (Music), M. N. D. +2 High School Raipur Ujiarpur, Samastipur.
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Friday, February 22, 2019
Tere naam Ka deewana : Mr. Ashok Kumar
Gajal - Tere naam Ka deewana by Mr. Ashok Kumar, PGT (Music), M. N. D. +2 High School Raipur Ujiarpur, Samastipur.
Thursday, February 14, 2019
कण : परिभाषा
किसी दूसरे को स्पर्श कर के जब कोई स्वर बजाया जाता है तब उस किये हुए स्वर को कण कहा जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं:
१. निचे के स्वर से ऊपर के स्वर तक जाते हैं:
रे ग प
ग, म, सां
२. यह कण ऊपर के स्वर को लेकर नीचे के स्वर पर आने से होता है:
ग म नि
सा, ग, प
Monday, February 11, 2019
Sunday, February 10, 2019
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राग अल्हैया बिलावल का परिचय
थाट - बिलावल जाति - षाडव - सम्पूर्ण
वादी - धैवत संवादी - गंधार
वर्ज्य स्वर - आरोह में म
आरोह - सा, ग रे ग प, ध नि सां
सम्प्रकृति राग - बिलावल
विशेषताये
१. भोर आई गया अन्धियारा - बावर्ची
२. सारे के सारे ग म को लेकर गाते चले - परिचय
वादी - धैवत संवादी - गंधार
वर्ज्य स्वर - आरोह में म
विकृत स्वर - अवरोह में वक्र कोमल नि
आरोह - सा, ग रे ग प, ध नि सां
अवरोह - सां नि ध प, घ नि ध प, म ग म रे सा
पकड़ - ग प ध नि ध प, म ग म रे
समय - दिन का प्रथम प्रहर
पकड़ - ग प ध नि ध प, म ग म रे
समय - दिन का प्रथम प्रहर
सम्प्रकृति राग - बिलावल
विशेषताये
- यह बिलावल का एक प्रकार है
- आरोह-अवरोह दोनों में शुद्ध नि प्रयोग करते हैं.
- कोमल नि केवल अवरोह में इस प्रकार प्रयोग किया जाता है - सां नि ध प, ध नि ध प
- राग की चलन उत्तरांग में अधिक होती है.
- अवरोह में ग स्वर वक्र प्रयोग होता है, जैसे - म ग म रे
१. भोर आई गया अन्धियारा - बावर्ची
२. सारे के सारे ग म को लेकर गाते चले - परिचय
राग भीमपलासी का परिचय
राग भीमपलासी का परिचय
जब काफी के मेल में, आरोहन रेध त्याग |
तृतीय प्रहार दिन ग नि कोमल, मानत म सा संवाद ||
थाट - काफी जाति - औडव-सम्पूर्ण
वादी - म संवादी - सा
आरोह - नि सा ग म, प, नि, सां
जब काफी के मेल में, आरोहन रेध त्याग |
तृतीय प्रहार दिन ग नि कोमल, मानत म सा संवाद ||
थाट - काफी जाति - औडव-सम्पूर्ण
वादी - म संवादी - सा
आरोह - नि सा ग म, प, नि, सां
अवरोह - सां नि ध प, म प ग म, ग रे सा
पकड़ - नि सा म, म प ग म, ग रे सा
न्यास के स्वर - सा, ग म प
सम्प्रकृति राग - बागेश्री
विशेषतायें
पकड़ - नि सा म, म प ग म, ग रे सा
न्यास के स्वर - सा, ग म प
सम्प्रकृति राग - बागेश्री
विशेषतायें
- इसमें ग नि कोमल तथा अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग किया जाता है.
- आरोह में रे ध वर्जित है.
- अवरोह में सातों स्वरों का प्रयोग होता है.
- इसमें सा म और म ग की संगति बार-बार दिखाते हैं.
- नि के साथ सा के तथा ग के साथ म का मींड दिखाने की परंपरा है.
- यह करुण प्रकृति का राग है. इसमें बड़ा ख्याल, छोटा ख्याल, तराना, ध्रुपद-धमार आदि सभी गाये बजाये जाते हैं.
इस राग पर आधारित कुछ बॉलिवुड गाने
१. दिल के टुकड़े टुकड़े कर के - दादा
२. दिल में तुझे बिठाके - फकीरा
३. ए री मैं तो प्रेम दिवानी
४. ए ली रे ए ली क्या है ये पहेली - यादें
५. किस्मत से तुम हमको मिले हो - पुकार
६. नैनों में बदरा छाये - मेरा साया
राग वृन्दावनी सारंग का परिचय
राग वृन्दावनी सारंग का परिचय
वर्ज्य करे धैवत गंधार, गावत काफी अंग |
दो निषाद रे प संवाद, है वृन्दावनी सारंग ||
थाट - काफी जाति - औडव औडव
वादी - रे संवादी - प
आरोह - ऩि सा रे म प नि सां
दो निषाद रे प संवाद, है वृन्दावनी सारंग ||
थाट - काफी जाति - औडव औडव
वादी - रे संवादी - प
आरोह - ऩि सा रे म प नि सां
अवरोह - सां नि प म रे सा
पकड़ - रे म प नि प, म रे, ऩि सा
समय - मध्यान्ह काल
न्यास के स्वर - सा, रे, प
सम्प्रकृति राग - सूर मल्हार
मतभेद - स्वर की दृष्टि से यह राग खमाज थाट जन्य माना जा सकता है, किन्तु स्वरुप की दृष्टि से इसे काफी थाट का राग मानना सर्वथा उचित है.
विशेषता
पकड़ - रे म प नि प, म रे, ऩि सा
समय - मध्यान्ह काल
न्यास के स्वर - सा, रे, प
सम्प्रकृति राग - सूर मल्हार
मतभेद - स्वर की दृष्टि से यह राग खमाज थाट जन्य माना जा सकता है, किन्तु स्वरुप की दृष्टि से इसे काफी थाट का राग मानना सर्वथा उचित है.
विशेषता
- इसके अतिरिक्त सारंग के अन्य प्रकार हैं - शुद्ध सारंग, मियाँ की सारंग, बड़हंस की सारंग, सामंत सारंग
- इसके आरोह में शुद्ध और अवरोह में कोमल नि का प्रयोग किया जाता है.
- ऐसा कहा जाता है की इस राग की रचना वृन्दावन में प्रचलित एक लोकगीत पर आधारित है.
- इसमें बड़ा ख्याल, छोटा ख्याल और तराना आदि गाये जाते हैं.
थाट : परिभाषा
थाट स्वरों की एक विशेष रचना होती है जिसमे से राग की बुनियाद बनती है. थाट के सम्बन्ध में निम्नलिखित बाते ध्यान रखी जाति है -
१. थाट में हमेशा सातों स्वर होते हैं,
२. थाट में रंजकता होनी आवश्यक नहीं है
३. थाट के लक्षण बताने के लिए अवरोह की कोई आवश्यकता नहीं है.
Saturday, February 9, 2019
वर्ण : परिभाषा
गाने की प्रत्यक्ष क्रिया या स्वरों की विविध चलन को वर्ण कहते हैं. ये चार प्रकार के होते हैं। अभिनव राग मंजरी में कहा गया है, "गान क्रियोच्यते वर्ण:" अर्थात् गाने की क्रिया को वर्ण कहते हैं।
१. स्थाई वर्ण - जब कोई स्वर एक से अधिक बार उच्चारित किया जाता है तो उसे स्थायी वर्ण कहते हैं, जैसे - रे रे, ग ग ग, म म म आदि।
२. आरोही वर्ण - स्वरों के चढ़ते हुये क्रम को आरोही वर्ण कहते हैं जैसे- सा रे म ग प ध नी
३. अवरोही वर्ण - स्वरों के उतरते हुये क्रम को अवरोही वर्ण कहते हैं जैसे - नि ध प म ग रे सा
- ४. संचारी वर्ण - उपर्युक्त तीनों वर्णों के मिश्रित रूप को संचारी वर्ण कहते हैं । इसमें कभी तो कोई स्वर ऊपर चढ़ता है तो कभी कोई स्वर बार-बार दोहराया जाता है। दूसरे शब्दों में संचारी वर्ण में कभी आरोही, कभी अवरोही और कभी स्थाई वर्ण दृष्टिगोचर होता है जैसे - सा सा रे ग म प प म ग रे सा।
विवादी : परिभाषा
जिस स्वर को राग में लगाने से राग का स्वरुप बिगड़ जाये, अर्थात राग में न प्रयोग किए जाने वाले स्वरों को विवादी कहते हैं. इसे राग का शत्रु भी कहते हैं. प्रचार में यह वर्ज्य या वर्जित स्वर कहलाता है.
कभी-कभी राग की सुंदरता बढ़ाने के लिए विवादी स्वर का क्षणिक प्रयोग भी किया जाता है ऐसा करते समय बड़ी सावधानी की आवश्यकता होती है अन्यथा राग के बिगड़ने की संभावना रहती है।
१. विवादी स्वर का उपयोग उस समय करना चाहिए जबकि राग के रंजकता में वृद्धि हो। केवल प्रयोग के लिए प्रयोग न करना चाहिए अन्यथा राग हानि होगी। बिहारग में तीव्र म विवादी स्वर है विवादी स्वर के प्रयोग करने से राग हानि नहीं होती बल्कि उसके गलत प्रयोग करने से राग हानि अवश्य होती है।
२. विवादी स्वर का अल्प प्रयोग होना चाहिए। ऐसा न करने से विवादी अनुवादी हो जाएगा।
३. विवादी के प्रयोग से राग का मूल स्वरूप किसी भी अंश में नहीं बिगड़ना चाहिए।
कभी-कभी राग की सुंदरता बढ़ाने के लिए विवादी स्वर का क्षणिक प्रयोग भी किया जाता है ऐसा करते समय बड़ी सावधानी की आवश्यकता होती है अन्यथा राग के बिगड़ने की संभावना रहती है।
१. विवादी स्वर का उपयोग उस समय करना चाहिए जबकि राग के रंजकता में वृद्धि हो। केवल प्रयोग के लिए प्रयोग न करना चाहिए अन्यथा राग हानि होगी। बिहारग में तीव्र म विवादी स्वर है विवादी स्वर के प्रयोग करने से राग हानि नहीं होती बल्कि उसके गलत प्रयोग करने से राग हानि अवश्य होती है।
२. विवादी स्वर का अल्प प्रयोग होना चाहिए। ऐसा न करने से विवादी अनुवादी हो जाएगा।
३. विवादी के प्रयोग से राग का मूल स्वरूप किसी भी अंश में नहीं बिगड़ना चाहिए।
अनुवादी : परिभाषा
वादी और संवादी को छोड़कर बाद की नियमित स्वरों को अनुवादी कहते हैं. इन्हें राग का सेवक कहते हैं.
उदाहरण के लिए भैरवी राग में म-सा के अतिरिक्त जो क्रमशः वादी-संवादी हैं, राग के शेष स्वर अनुवादी कहलाते हैं। अनुवादि स्वरों को अनुचर या सेवक कहा गया है।
राग यमन में वादी ग, संवादी नी और शेष स्वर - सा रे तिव्र-म, प, ध स्वर अनुवादी हैं।
राग खमाज में ग-वादी, नी-संवादी और शेष स्वर - सा, रे, ग, प और ध अनुवादी हैं।
The notes in a raga that neither Vadi nor, Samvadi are called Anuvadi notes. They are often called companion notes.
उदाहरण के लिए भैरवी राग में म-सा के अतिरिक्त जो क्रमशः वादी-संवादी हैं, राग के शेष स्वर अनुवादी कहलाते हैं। अनुवादि स्वरों को अनुचर या सेवक कहा गया है।
राग यमन में वादी ग, संवादी नी और शेष स्वर - सा रे तिव्र-म, प, ध स्वर अनुवादी हैं।
राग खमाज में ग-वादी, नी-संवादी और शेष स्वर - सा, रे, ग, प और ध अनुवादी हैं।
The notes in a raga that neither Vadi nor, Samvadi are called Anuvadi notes. They are often called companion notes.
संचारी : परिभाषा
गाने के तीसरे पद को संचारी कहते हैं. इस पद से स्थाई के ऊपर वाले भाग का विशेष बोध होता है.
अंतरा : परिभाषा
गाने के दुसरे पद को अंतरा कहते हैं. यह पद मध्य-सप्तक से आरम्भ होकर तार-सप्तक के मध्य तक जाता है.
स्थाई : परिभाषा
गाने के प्रथम पद को स्थाई कहते हैं. इसमें राग का स्पष्ट रूप प्रकट हो जाता है और तार-सप्तक के स्वरों का उपयोग कम होता है.
गमक : परिभाषा
स्वरस्य कम्पो गमक: श्रोतृचित्तसुखावह:।
सितार में गमक मिठास उत्पन्न करने के लिए एक उत्तम क्रिया है। मींड, जमजमा, मुर्की एवं गिटकिड़ी आदि सभी गमक के हीं प्रकार हैं। परन्तु जब किसी स्वर की श्रुतियों को उससे आगे-पीछे की श्रुतियों में इस प्रकार मिला दिया जाये की आगे-पीछे के स्वर सुनाई न देकर, जिस स्वर पर यह क्रिया कर रहे हैं, केवल वही स्वर सुनाई दे तो इस क्रिया को गमक कहते हैं.
नीचे स्वर से हिलते हुये ऊंचे स्वर पर जाने से गमक होता है। यह दो स्वरों से उत्पन्न होता है, और मीड़ के सहीरे बजाया जाता है।
गमक ७ प्रकार के होते हैं -
स्फुरितं कम्पितं लीनं स्तिमितांदोलितावपि
आहतं त्रिकभिन्नं च सप्तैते गमक: स्मृता।।
गिटकिड़ी : परिभाषा
सितार वादन में मुर्की बजाते हुए जब अंत में मध्यमा अंगुली से जमजमा की भांति किसी स्वर पर प्रहार किया जाता है तो मिजराब के एक हीं ठोकर से चार स्वर की ध्वनि सुनाई देती है जैसे की 'रेसानिसा'
मुर्की : परिभाषा
सितार वादन में जब एक हीं मिजराब के ठोकर में बिना मींड के तीन खरे स्वर बजाये जाएँ तो इस क्रिया को मुर्की कहते है. जैसे 'रेसानी'. इस क्रिया में रे पर मिजराब से ठोकर देते समय तर्जनी सा और मध्यमा रे के परदे पर रहेगी. रे पर मिजराब लगते हीं मध्यमा को तुरंत तार पर से उठाने से 'रेसा' की ध्वनि उत्पन्न होगी, एवं तर्जनी तुरंत घसीट कर नि के परदे पर पहुँचाने से 'रेसानी' की ध्वनि सुने देगी.
जमजमा : परिभाषा
सितार वादन में किसी भी स्वर पर तर्जनी द्वारा बाज के तार को दबाकर उससे अगले परदे पर मध्यमा अंगुली को जोर से मरने पर जिस स्वर पर मध्यमा पड़ेगी, उसी स्वर की हल्की ध्वनि उत्पन्न होगी. इसे बजाने में दुसरे स्वर पर मिजराब द्वारा ठोकर नहीं दी जाएगी बल्कि केवल मध्यमा ऊँगली से दुसरे स्वर के परदे पर प्रहार की जाएगी. जब इस क्रिया को एक या अधिक बार किया जाता है तो इसे जमजमा कहते हैं.
कृन्तन : परिभाषा
इसकी यन्त्र संगीत में प्रयोग होता है। यह दो, तीन, चार स्वर से उत्पन्न होता है। यह एक स्वर का सम्बन्ध दूसरे स्वर से बनाये रखता है। ऊंचे स्वर से नीचे स्वर पर आने से दो आवाज होती है, उसे कृन्तन कहते हैं। सितार वादन में मिजराब के एक हीं ठोकर में दो-तीन अथवा चार स्वरों को बिना मींड के केवल अँगुलियों के सहायता से निकलने की क्रिया को कृन्तन कहते हैं. कृन्तन में स्वरों की संख्या चार से अधिक भी हो सकती है.
विलोम मींड : परिभाषा
यदि सा के परदे पर पूर्व में हीं बिना तार को ठोकर दिए इतना खिंच जाये की आघात होने पर रे का स्वर सुने परे और फिर खींचे हुए तार को धीरे-धीरे ढीला करते हुए वापस सा के परदे पर आ जाने से सा का स्वर सुने पड़ने लगे तो ऐसे अवरोही क्रम में रे से सा की ध्वनि उत्पन्न हो तो इसे विलोम मींड कहते हैं. इस प्रकार की मींड में तार खीचने के बाद मिजराब से ठोकर दी जाति है.
अनुलोम मींड : परिभाषा
यदि सा पर मिजराब लगाकर दूसरी ऊँगली को रे पर न ले जाकर उसी सा के परदे पर हीं तार को इतना खींची जाय की रे का स्वर सुने देने लगे इस प्रकार आरोही के लिए खिंची गयी मींड को अनुलोम मींड कहते हैं. इस क्रिया में सा से रे की ध्वनि पहुंचने में ध्वनि कहीं भी खंडित नहीं होती है.
मींड : परिभाषा
सितार में ही नहीं बल्कि समस्त भारतीय संगीत में मींड एक महत्वपूर्ण क्रिया है. संगीत में मिठास उत्पन्न करने वाली इस जैसी कोई अन्य क्रिया नहीं है. जब सितारवादक एम् ऊँगली से सा पर रखकर मिजराब लगते हैं और दूसरी ऊँगली से रे बजाते हैं अर्थात दोनों स्वरों पर ठोकर देकर बजाते हैं तो इसे खड़ा स्वर बजाना कहते हैं. किन्तु यदि एक स्वर पर मिजराब द्वारा ठोकर देने के बाद दुसरे स्वर की ध्वनि निकाली जाये तो इसे मींड कहते हैं.
Wednesday, February 6, 2019
राग यमन विशेष
Raga yaman - by NCERT Official
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