Katthak dance Syllabusby Shri Harish Chandra Srivastava It is also useful for the Kathak dance Students of High School, Intermediate and B.A. Examinations of different Boards and Universities of India. Description: This text book of Kathak dance has been written according to the syllabus of Junior and Senior Diploma courses of Prayag Sangit Samiti, Allahabad, Praveshika and Madhyama courses of A.B. Gandharva Mahavidyalaya Mandal, Bombay, Prathama and Madhyama courses of Bhatkhande Sangit Vidyapeeth, Lucknow and Indira Kala Sangit Vishwa-Vidyalaya, Khairagarh and Prarambhik and Nritya Bhushan Courses of Pracheen Kala Kendra, Chandigarh. |
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Thursday, December 27, 2018
कत्थक नृत्य सिलेबस भाग १
Wednesday, December 26, 2018
राग भैरवी का परिचय
राग भैरवी का परिचय
''''रे ग ध नि कोमल राखत, मानत मध्यम वादी।
प्रात: समय जाति संपूर्ण, सोहत सा संवादी॥''''
कोमल स्वर - रिषभ, गंधार, धैवत और निषाद।
शुद्ध स्वर - षडज, मध्यमा, पंचम।
जाति - सम्पूर्ण-सम्पूर्ण
थाट - भैरवी
वादी - मध्यमा
संवादी - षडज
शुद्ध स्वर - षडज, मध्यमा, पंचम।
जाति - सम्पूर्ण-सम्पूर्ण
थाट - भैरवी
वादी - मध्यमा
संवादी - षडज
आरोह- सा रे॒ ग॒ म प ध॒ नि॒ सां।
अवरोह- सां नि॒ ध॒ प म ग॒ रे॒ सा।
पकड़- म, ग॒ रे॒ ग॒, सा रे॒ सा, ध़॒ नि़॒ सा।
विशेषता -
विशेष - यह भैरवी थाट का आश्रय राग है। हालांकि इस राग का गाने का समय प्रातःकाल है पर इस राग को गाकर महफिल समाप्त करने की परंपरा प्रचार में है। आजकल इस राग में बारह स्वरों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करने का चलन बढ़ गया है जिसमें कलाकार कई रागों के अंगों का प्रदर्शन करते हैं। यह राग भाव-अभिव्यक्ति के लिए बहुत अनुकूल तथा प्रभावकारी है। इसके पूर्वांग में करुण तथा शोक रस की अनुभूति होती है। और जैसे ही पूर्वार्ध और उत्तरार्ध का मिलाप होता है तो इस राग की वृत्ति उल्हसित हो जाती है।
इस राग के इतने लचीले, भावपूर्ण तथा रसग्राही स्वर हैं की श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इस राग का विस्तार मध्य तथा तार सप्तक में किया जाता है।
इस राग में जब शुद्ध रिषभ का प्रयोग किया जाता है तो इसे सिंधु-भैरवी कहा जाता है।
इस राग की प्रकृति चंचल है अतः इसमें ख्याल नही गाये जाते। इसमें भक्ति तथा श्रृंगार रस की अनुभूति भरपूर होती है अतः इसमें भजन, ठुमरी, टप्पा, ग़ज़ल, आदि प्रकार गाये जाते हैं।
राग भैरवी आधारित फिल्मी गाने -
गूंज उठी शहनाई - दिल का खिलौना हाय टूट गया
सीमा - सुनो छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी
बैजू बावरा - तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा
सत्यम शिवम सुन्दरम् - सत्यम शिवम सुन्दरम,
दाग - ऐ मेरे दिल कहीं और चल
आवारा - आवारा हूं या गर्दिश में मैं आसमान का तारा
- घर आया मेरा परदेशी
रोटी कपड़ा और मकान - महंगाई मार गई
दो कलियां - बच्चे मन के सच्चे
बरसात - बरसात में हम से मिले तुम सजन,
- छोड़ गये बालम
दो बदन - भरी दूनिया में आखिर दिल
सत्यम शिवम सुन्दरम - भोर भये पनघट पे
संगम - बोल राधा बोल संगम, दोस्त दोस्त ना रहा
जंगली - चाहे कोई मुझे जंगली कहे
छलिया - छलिया मेरा नाम
अमर प्रेम - चिंगारी कोई भड़के तो
सुर संगम - धन्य भाग सेवा का अवसर पाया
गैम्बलर - दिल आज शायर है
दिल अपना और प्रित पराई - दिल अपना और प्रित पराई
गंगा जमुना - दो हंसों का जोड़ा
तीसरी कसम - दुनिया बनाने वाले
कुदरत - हमें तुमसे प्यार कितना
जिस देश में गंगा बहती है - होठों पे सच्चाई रहती है
- मेरा नाम राजू घराना
अमर - इन्साफ का मन्दिर है ये भगवान का घर है
भरोसा - इस भरी दुनिया में कोई
माया - जा रे, जारे उर जा रे पंछी
शाह जहां - जब दिल हीं टूट गया
मेरा नाम जोकर - जीना यहां मरना यहां
- कहता है जोकर सारा जमाना
सहेली - जिस दिल में बसा था प्यार तेरा
झनक झनक पायल बाजे - जो तुम तोड़ो पिया
संत ज्ञानेश्वर - ज्योत से ज्योत जगाते चलो
ऐतबार - किसी नज़र को तेरा इंतजार
दिल हीं तो है - लागा चुनरी में दाग
आलाप - माता सरस्वती शारदा
बसन्त बहार - मैं पिया तेरी तु माने या ना माने
उपकार - मेरे देश की धरती सोना उगले
श्री ४20 - मेरा जूता है जापानी
- प्यार हुआ इकरार हुआ है
- रमैया वस्तावैया
द लिजेन्ड ऑफ भगत सिंह - मेरा रंग दे बसन्ती चोला
कसमे वादे - मिले जो कड़ी कड़ी
पं० भीमसेन जोशी - मिले सुर मेरा तुम्हारा
किनारा - मीठे बोल बोल
जवाब - पूरब न जईयो
दिल भी तेरा हम भी तेरे - मुझको इस रात की तन्हाई
मेरी सूरत तेरी आँखें - नाचे मन मोरा मगन तीद दा
दूज का चांद - फूल गेंदवा न मारो
आह - राजा की आयेगी बारात
अनाड़ी - सबकुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी
- तेरा जाना
साहिब बीबी और गुलाम - साक़िया आज मुझे नीन्द नहीं
गुलामी - सुनाई देती है जिसकी धड़कन
शबनम - तेरी निगाहों पे मर
धूल का फूल - तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
मैं चुप रहूंगी - तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो
आई मिलन की बेला - तुम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवा
ग़ुलाम अली - दिल ये पागल दिल मेरा क्युं बुझ गया
हरियाली और रास्ता - ये हरियाली और ये रास्ता
गूंज उठी शहनाई - दिल का खिलौना हाय टूट गया
सीमा - सुनो छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी
बैजू बावरा - तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा
सत्यम शिवम सुन्दरम् - सत्यम शिवम सुन्दरम,
दाग - ऐ मेरे दिल कहीं और चल
आवारा - आवारा हूं या गर्दिश में मैं आसमान का तारा
- घर आया मेरा परदेशी
रोटी कपड़ा और मकान - महंगाई मार गई
दो कलियां - बच्चे मन के सच्चे
बरसात - बरसात में हम से मिले तुम सजन,
- छोड़ गये बालम
दो बदन - भरी दूनिया में आखिर दिल
सत्यम शिवम सुन्दरम - भोर भये पनघट पे
संगम - बोल राधा बोल संगम, दोस्त दोस्त ना रहा
जंगली - चाहे कोई मुझे जंगली कहे
छलिया - छलिया मेरा नाम
अमर प्रेम - चिंगारी कोई भड़के तो
सुर संगम - धन्य भाग सेवा का अवसर पाया
गैम्बलर - दिल आज शायर है
दिल अपना और प्रित पराई - दिल अपना और प्रित पराई
गंगा जमुना - दो हंसों का जोड़ा
तीसरी कसम - दुनिया बनाने वाले
कुदरत - हमें तुमसे प्यार कितना
जिस देश में गंगा बहती है - होठों पे सच्चाई रहती है
- मेरा नाम राजू घराना
अमर - इन्साफ का मन्दिर है ये भगवान का घर है
भरोसा - इस भरी दुनिया में कोई
माया - जा रे, जारे उर जा रे पंछी
शाह जहां - जब दिल हीं टूट गया
मेरा नाम जोकर - जीना यहां मरना यहां
- कहता है जोकर सारा जमाना
सहेली - जिस दिल में बसा था प्यार तेरा
झनक झनक पायल बाजे - जो तुम तोड़ो पिया
संत ज्ञानेश्वर - ज्योत से ज्योत जगाते चलो
ऐतबार - किसी नज़र को तेरा इंतजार
दिल हीं तो है - लागा चुनरी में दाग
आलाप - माता सरस्वती शारदा
बसन्त बहार - मैं पिया तेरी तु माने या ना माने
उपकार - मेरे देश की धरती सोना उगले
श्री ४20 - मेरा जूता है जापानी
- प्यार हुआ इकरार हुआ है
- रमैया वस्तावैया
द लिजेन्ड ऑफ भगत सिंह - मेरा रंग दे बसन्ती चोला
कसमे वादे - मिले जो कड़ी कड़ी
पं० भीमसेन जोशी - मिले सुर मेरा तुम्हारा
किनारा - मीठे बोल बोल
जवाब - पूरब न जईयो
दिल भी तेरा हम भी तेरे - मुझको इस रात की तन्हाई
मेरी सूरत तेरी आँखें - नाचे मन मोरा मगन तीद दा
दूज का चांद - फूल गेंदवा न मारो
आह - राजा की आयेगी बारात
अनाड़ी - सबकुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी
- तेरा जाना
साहिब बीबी और गुलाम - साक़िया आज मुझे नीन्द नहीं
गुलामी - सुनाई देती है जिसकी धड़कन
शबनम - तेरी निगाहों पे मर
धूल का फूल - तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
मैं चुप रहूंगी - तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो
आई मिलन की बेला - तुम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवा
ग़ुलाम अली - दिल ये पागल दिल मेरा क्युं बुझ गया
हरियाली और रास्ता - ये हरियाली और ये रास्ता
Monday, October 22, 2018
थाट और उनके प्रकार (That and their types)
थाट
हिंदुस्तानी संगीत पद्धति में थाट माने गए हैं।
थाट के प्रकार
मेलः स्वरसमूहः स्याद्रागव्यंजनशक्तिमान
अर्थात मेल में स्वरों की ऐसी रचना है, जिससे राग बन सके। इस प्रकार के कुल ७२ हैं परन्तु वे सब हमारे काम के नहीं हैं। हिंदुस्तानी संगीत पद्धति में थाट माने गए हैं।
थाट के प्रकार
वैसे तो थाट की संख्या ७२ है किन्तु मुख्यतः निम्नलिखित १० थाट हैं जो आज-कल व्यवहार में हैं:-
Sl. | That | ||||||||
1 | BILAWAL | S | R | G | M | P | D | N | S |
2 | KHAMAJ | S | R | G | M | P | D | n | S |
3 | BHAIRAV | S | r | G | M | P | d | N | S |
4 | KAFI | S | R | g | M | P | D | n | S |
5 | ASAWARI | S | R | g | M | P | d | n | S |
6 | BHAIRAVI | S | r | g | M | P | d | n | S |
7 | KALYAN | S | R | G | m | P | D | N | S |
8 | MARWA | S | r | G | m | P | D | N | S |
9 | PURVI | S | r | G | m | P | d | N | S |
10 | TODI | S | r | g | m | P | d | N | S |
कोमल स्वर - r g d n
तीव्र स्वर - m
शुद्ध स्वर - S R G M P D N
Trick to remember ten thats
B3 - Bilawal Bhairav Bhairavi
K3 - Kalyan Kafi Khamaj
AMPT - Asawari Marwa Purvi Todi
Wednesday, May 23, 2018
Wednesday, May 16, 2018
नाद की विशेषताये
नाद की विशेषताएं
नाद की मुख्य तीन विशेषताएं हैं -
१. नाद की ऊँचाई-निचाई२. नाद का छोटा-बड़ापन
३. नाद की जाति अथवा गुण
१. नाद की ऊँचाई-निचाई
गाते बजाते समय हम यह अनुभव करते हैं कि बारहों स्वर एक दुसरे से ऊँचे नीचे हैं. स्वर अथवा नाद की ऊंचाई-निचाई आन्दोलन-संख्या पर आधारित होती है. अधिक आन्दोलन-संख्या वाला स्वर ऊँचा और इसके विपरीत कम आन्दोलन वाला स्वर नीचा होता है. गाते-बजाते समय ऐसा सहज हीं अनुभव की जा सकती है कि सा से ऊँचा ग होता है, जिसका अर्थ है कि ग की आन्दोलन सा से अधिक होगी. इसी प्रकार ग से नीचा रे होता है. अतः रे की आन्दोलन ग से कम होगी.
२. नाद का छोटा-बड़ापन
क्रियात्मक संगीत में यह स्वतः हीं अनुभव किया जा सकता है कि धीरे से उच्चारण करने पर स्वर थोड़ी दूर तक और जोर से की गई उच्चारण अधिक दुरी तक सुनाई पड़ता है. इसे संगीत में नाद का छोटा-बड़ापन कहते हैं. छोटा नाद कम दुरी तक और धीमा सुनाई पड़ता है और बड़ा नाद अधिक दूरी तक स्पष्ट सुनाई पड़ता है. तानपूरे के तार को धीरे से आघात करने में तार के आन्दोलन की चौड़ाई कम होगी अर्थात तार कम दूरी तक ऊपर-निचे कम्पन्न करेगा और फलस्वरूप छोटा नाद उत्पन्न होगा. इसके विपरीत तार को जोर से छेड़ने से तार के आन्दोलन की चौड़ाई अधिक होगी और बड़ा नाद उत्पन्न होगा. इस प्रकार स्पस्ट है की नाद का छोटा-बड़ापन आन्दोलन की चौड़ाई पर निर्भर है.३. नाद की जाति अथवा गुण
प्रत्येक वाद्य का स्वर एक दूसरे से अलग होता है. जैसे कि सितार का स्वर बेला से और बेला का स्वर हारमोनियम से और हारमोनियम का स्वर सरोद से भिन्न होता है. इस लिए दूर से आती हुई संगीत ध्वनि को हम पहचान लेते हैं कि ध्वनि किस वाद्य की है. विभिन्न वाद्यों के स्वरों में भिन्नता होते का कारण यह है कि प्रत्येक वाद्य के सहायक नादों की संख्या, उनका क्रम और प्राबल्य एक दूसरे से भिन्न होता है. इसी को नाद की जाति अथवा गुण कहते हैं. ऐसा मानना है कि कोई भी नाद अकेला उताण नहीं होता, उसके साथ कुछ अन्य नाद भी उत्पन्न हुआ करते हैं, जिन्हें केवल अनुभवी कान हीं सुन सकते हैं. ऐसे स्वतः उत्पन्न होने वाले स्वरों को सहायक नाद कहते हैं. सहायक नादों की संख्या, क्रम और प्राबल्य पर नाद की जाति आधारित होती है.
Tuesday, May 8, 2018
Raag parichay
Raag Parichay from Part 1 to Part 4
Raag Parichaya by Pdt Harish Chandra Shrivastava set of 4 books part I to IV Indian Music Theory Book, Best book for Theory study in Indian Music in Hindi Product detailsPaperbackLanguage: Hindi ASIN: B00LEANUUC Package Dimensions: 17.8 x 12.7 x 5.3 cm by Shri Harish Chandra Srivastava |
Raag Parichay from Part 1 by Shri Harish Chandra Srivastava |
Sangeet Visharad (Hindi)
Sangeet visharadby Vasant Famous book "Sangeet Visharad", Indian Music Theory Book, Best book for Indian Music in Hindi covers all the topics of Indian Music. Product detailsHardcover: 785 pagesPublisher: Sangeet Karyalay; 28th edition (2013) Language: Hindi ISBN-10: 8185057001 ISBN-13: 978-8185057002 Package Dimensions: 23.2 x 16.7 x 2.8 cm |
Sixth Year - Sangeet Prabhakar - Vocal
प्रयाग संगीत समिति, इलाहबाद का पाठ्यक्रम.
षष्ठम वर्ष/संगीत प्रभाकर (Sixth Year/Sangeet Prabhakar)
क्रियात्मक परीक्षा २०० अंकों की और दो प्रश्न-पत्र ५०-५० अंकों के. पिछले वर्षों का पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है.
क्रियात्मक (Practical)
१. राग पहचान में निपुणता और अल्पत्व-बहुत्व, तिरोभाव-आविर्भाव
और समता-विभिन्नता दिखाने के लिए पूर्व वर्षों के सभी रागों का प्रयोग हो सकता है,
इसलिए सभी का विशेष विस्तृत अध्ययन आवश्यक है.
२. गाने में विशेष तैयारी, आलाप-तान में सफाई महफिल के गाने
में निपुणता.
३. ठप्पा, ठुमरी, तिरवट और चतुरंग गीतों का परिचय, इनमे से
किन्हीं दो गीतों को जानना आवश्यक है.
४. रामकली, मियाँ मल्हार, परज, बसंती, राग श्री, पूरिया
धनाश्री, ललित, शुद्ध कल्याण, देशी और मालगुन्जी रागों में एक-एक बड़ा-ख्याल और
छोटा ख्याल पूर्ण तैयारी के साथ. किन्हीं दो रागों में एक-एक धमार, एक-एक ध्रुपद
और एक-एक तराना जानना आवश्यक है. प्रथम वर्ष से षष्ठम वर्ष एस के रागों में से
किसी एक चतुरंग.
५. काफी, पीलू, पहाड़ी, झिंझोटी, भैरवी तथा खमाज इनमे से
किन्हीं दो रागों में दो ठुमरी.
६. लक्ष्मी ताल, ब्रह्म ताल तथा रूद्र ताल – इनका पूर्ण परिचय
तथा इनको पिछली लयकारियों में हाथ से ताली देकर लिखने का अभ्यास.
प्रथम प्रश्नपत्र - शास्त्र (First Paper - Theory)
१. प्रथम से छठे वर्ष के सभी रागों का विस्तृत, तुलनात्मक और सूक्ष्म
परिचय. उनके आलाप-तान आदि स्वरलिपि में लिखने का पूर्ण अभ्यास. समप्रकृति रागों
में समता-विभिन्नता दिखाना.
२. विभिन्न राओं में अल्पत्व-बहुत्व, अन्य रागों की छाया आदि
दिखाते हुए आलाप-तान स्वरलिपि में लिखना.
३. कठिन लिखित स्वर समूहों द्वारा राग पहचानना.
४. दिए हुए रागों में नए सरगम बनाना. दी हुई कविता को राग में
ताल-बद्ध करने का ज्ञान.
५. गीतों की स्वरलिपि लिखना, धमार, ध्रुपद को दुगुन, तिगुन, चौगुन,
और आड़ आदि लयकारियों में लिखना.
६. ताल के ठेके को विभिन्न लयकारियों में लिखना.
७. कुछ लेख रेज – जीवन में संगीत की आवश्यकता, महफ़िल की गायकी,
शास्त्रीय संगीत का जनता पर प्रभाव, रेडियो और सिनेमा-संगीत, पृष्ठ संगीत (background music), हिन्दुस्तानी संगीत और
वृंदवादन, हिन्दुस्तानी संगीत की विशेषताये, स्वर का लगाव, संगीत और स्वरलिपि
इत्यादि.
८. हस्सू-हद्दू खां, फैयाज़ खां, अब्दुल करीम खां, बड़े गुलाम
अली और ओंकारनाथ ठाकुर का जीवन परिचय और कार्य.
द्वितीय प्रश्नपत्र – शुद्ध शास्त्र (Second Paper - Theory)
१. पिछले सभी वर्षों के शास्त्र सम्बंधित विषयों का सूक्ष्म
तथा विस्तृत अध्ययन.
२. मध्य कालीन तथा आधुनिक संगीतज्ञों के स्वर स्थानों की
आन्दोलन-संख्याओं की सहायता तथा तार की लम्बाई की सहायता से तुलना. पाश्चात्य
स्वर-सप्तक की रचना, सरल गुणान्तर और शुभ स्वर संवाद के नियम, पाश्चात्य स्वरों की
आन्दोलन-संख्या, हिन्दुस्तानी स्वरों में स्वर संवाद, कर्नाटकी ताल पद्धति और
हिन्दुस्तानी ताल पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन. संगीत का संक्षिप्त क्रमिक इतिहास,
ग्राम, मूर्छना (अर्थ में क्रमिक परिवर्तन), मूर्छना और आधुनिक थाट, कलावंत, पंडित,
नायक, वाग्गेयकार, बानी (खंडार, डागुर, नौहार, गोबरहार), गीति, गीति के प्रकार,
गमक के विविध प्रकार, हिन्दुस्तानी वाद्यों के विविध प्रकार. (तत, अवनद्ध, घन, सुषरी)
३. निम्नलिखित विषयों का ज्ञान – तानपुरे से उत्पन्न होने वाले
सहायक नाद, पाश्चात्य सच्चा स्वर-सप्तक (Diatonic Scale) को (Equally Tempered Scale) में परिवर्तित होने का कारन
व विवरण, मेजर, माईनर और सेमिटोन, पाश्चात्य आधुनिक स्वरों के गुण-दोष, हारमोनियम पर
एक आलोचनात्मक दृष्टि, तानपुरे से निकलने वाले स्वरों के साथ हमारे आधुनिक
स्वर-स्थानों का मिलान. प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक राग-वर्गीकरण, उनका
महत्त्व, और उनके विभिन्न प्रकारों को पारस्परिक तुलना, संगीत-कला और शास्त्र का
पारस्परिक सम्बन्ध. भरत की श्रुतियाँ सामान थीं अथवा भिन्न थीं-इस पर विभिन्न
विद्वानों के विचार और तर्क. सारणा चतुष्टई का अध्ययन, उत्तर भारतीय संगीत को ‘संगीत
पारिजात’ की दें, हिन्दुस्तानी और कर्नाटकी संगीत-पद्धतियों की तुलना, उनके स्वर,
ताल और रागों का मिलन करते हुए पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धति का साधारण ज्ञान, संगीत
के घरानों का संक्षिप्त ज्ञान, रत्नाकर के दस विधि राग वर्गीकरण-भाषा, विभाषा
इत्यादि.
४. भातखंडे और विष्णु दिगंबर स्वर-लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन
और उनकी त्रुटी और उन्नति के सुझाव.
५. लेख-भावी संगीत के समुचित निर्माण के लिए सुझाव,
हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति के मुख्या सिद्धांत. प्राचीन और आधुनिक प्रसिद्द
संगीतज्ञों का परिचय तथा उनकी शैली. संगीत का मानव जीवन पर प्रभाव, संगीत और चित्त
(Mind and Music) स्कूलों द्वारा संगीत शिक्षा की त्रुटियों और उन्नति के सुझाव, संगीत और स्वर
साधन.
Monday, May 7, 2018
Fifth year - Vocal
प्रयाग संगीत समिति, इलाहबाद का पाठ्यक्रम.
पंचम वर्ष (Fifth Year)
क्रियात्मक परीक्षा १०० अंकों की और एक प्रश्न-पत्र ५० अंकों का, पिछले वर्षों का पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है.
क्रियात्मक (PRACTICAL)
१. कुछ कठिन लयकारियों को ताली देकर दिखाना. दो मात्रा में ३ मात्रा बोलना और ३ में ४ मात्रा बोलना इत्यादि.
२. नोम-तोम के आलाप का विशेष अभ्यास
३. पुरिया, गौड़ मल्हार, छायानट, श्री, हिंडोल, गौड़ सारंग, विभास, दरबारी कान्हड़ा, तोड़ी, अड़ाना इन रागों में १-१ विलंबित और १-१ द्रुत ख्याल पूर्णतया सुंदर गायकी के साथ. किन्हीं दो रागों में एक-एक धमार और किन्हीं दो में से एक-एक ध्रुपद जिनमे दुगुन, तिगुन चौगुन और आड़ करना आवश्यक है.
४. रागों का सुक्ष्म अध्ययन. रागों का तिरोभाव-आविर्भाव का क्रियात्मक प्रयोग.
५. पंचम सवारी, गजझम्पा, अद्धा, मत्त और पंजाबी तालों का पूर्ण ज्ञान और इन्हें ठाह, दुगुन तथा चौगुन लयकारियों में ताली देकर बोलना.
६. तीनताल, झपताल, चारताल, एकताल, कहरवा, तथा दादरा तालों के तबले पर बजने का साधारण अभ्यास.
शास्त्र (THEORY)
१. पिछले पाठ्यक्रमों का पूर्ण विस्तृत अध्ययन
२. अनिबद्ध गान के प्राचीन प्रकार – रागालाप, रुपकालाप, आलाप्तिगान, स्वस्थान-नियम, विदारी, राग लक्षण, जाति-गायन और विशेषताएं, सन्यास-विन्यास, गायकी, नायकी, गान्धर्व गीत (देशी-मार्गी) पाठ्यक्रम के रागों में तिरोभाव-आविर्भाव और अल्पत्वा-बहुत्व दिखाना.
३. श्रुति-स्वर विभाजन के सम्बन्ध में सम्पूर्ण इतिहास को तीन मुख्या कालों में विभाजन (प्राचीन, मध्य, आधुनिक), इन तीनों कालों के ग्रंथकारों के ग्रन्थ और उनमें वर्णित मतों में समय और भेद, षडज पंचम भाव और आन्दोलन संख्या तथा तार की लम्बाई का सम्बन्ध, किसी स्वर की आन्दोलन-संख्या तथा तार की लम्बाई निकालना जबकि षडज की दोनों वस्तुएं प्राप्त हों. इसी, प्रकार तार की लम्बाई दी हुई हो तो आन्दोलन-संख्या निकालना, मध्यकालीन पंडितों और आधुनिक पंडितों के शुद्ध और विकृत स्वरों के स्थानों की तुलना उनके तार की लम्बाईयों की सहायता से करना.
४. विभिन्न रागों के सरल तालों के सरगम मन से बनाना
५. इस वर्ष के रागों का विस्तृत अध्ययन तथा उनसे मिलते-जुलते रागों का मिलान, रागों में अल्पत्व-बहुत्व, तिरोभाव-आविर्भाव.
६. इस वर्ष के तालों का पूर्ण परिचय और उनके ठेकों को विभिन्न लयकारियों में ताल-लिपि में लिखना. गणित द्वारा किसी गीत या ताल की दुगुन, तिगुन आदि प्रारंभ करने का स्थान निश्चित करना.
७. गीत और उनकी तिगुन और चौगुन स्वरलिपि में लिखना.
८. निबंध के विषय – राग और रस, संगीत और ललित कलाएं, संगीत और कल्पना, यवन संस्कृति का हिन्दुस्तानी संगीत पर प्रभाव, संगीत व उसका भविष्य, संगीत में वाद्यों का स्थान, लोक संगीत आदि.
९. गीतों व तालों को किसी भी स्वरलिपि में लिखने का अभ्यास.
१०. श्रीनिवास, रामामत्य, ह्रदय नारायण देव, मोहम्मद रज़ा, सदारंग-अदारंग का जीवन परिचाल तथा उनका संगीत-कार्य.
Senior Diploma - Vocal
प्रयाग संगीत समिति, इलाहबाद का पाठ्यक्रम.
चतुर्थ वर्ष (Senior
Diploma)
क्रियात्मक परीक्षा १०० अंकों की और एक प्रश्न-पत्र ५० अंकों का, पिछले वर्षों का पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है.
क्रियात्मक (Practical)
१. स्वर ज्ञान का विशेष अभ्यास, कठिन स्वर-समूहों की पहचान.
२. तानपुरा और तबला मिलाने की विशेष क्षमता.
३. अंकों या स्वरों के सहारे ताली देकर विभिन्न लयों का
प्रदर्शन – द्विगुण (एक मात्रा में दो मात्रा), तिगुन (१ में ३) चौगुन, आड़ (२ में
३) और आड़ की उलटी (३ में २ मात्रा बोलना), (४ में ३) तथा ४ में ५ मात्राओं का
प्रदर्शन.
४. कठिन और सुन्दर आलाप और तानों का अभ्यास.
५. देशकार, शंकरा, जयजयवंती, कामोद, मारवा, मुल्तानी, सोहनी,
बहार, पूर्वी. इन रागों में १-१ विलंबित और द्रुत ख्याल, आलाप, तान, बोलतान सहित.
६. उक्त रागों में से किन्हीं दो में १-१ ध्रुपद तथा किन्हीं
दो में १-१ धमार केवल ठाह, द्विगुण, तिगुन, और चौगुन सहित तथा एक तराना.
७. ख्याल की गायकी में विशेष प्रवीणता.
८. टप्पा और ठुमरी के ठेकों का साधारण ज्ञान. जत और आड़ा चारताल
को पूर्ण रूप से बोलने का अभ्यास.
९. स्वर-समूहों द्वारा राग पहचान.
१०. गाकर रागों में समता-विभिन्नता दिखाना.
शास्त्र (Theory)
१. गीत के प्रकार – टप्पा, ठुमरी, तराना, तिरवट, चतुरंग, भजन,
गीत, गजल आदि गीत के प्रकारों का विस्तृत वर्णन, राग-रागिनी पद्धति आधुनिक आलाप-गायन
की विधि, तान के विविध प्रकारों का वर्णन, विवादी स्वर का प्रयोग, निबद्ध गान के
प्राचीन प्रकार (प्रबंध, वास्तु आदि) धातु, अनिबद्ध गान.
२. बाईस श्रुतियों का स्वरों में विभाजन (आधुनिक और प्राचीन
मत), खींचे हुए तार की लम्बाई का नाद के ऊँचे-निचेपन से सम्बन्ध.
३. छायालग और संकीर्ण राग, परमेल प्रवेशक राग, रागों का
समय-चक्र, दक्षिणी और उत्तरी हिन्दुस्तानी पद्धतियों के स्वर की तुलना, रागों का
समय-चक्र निश्चित करने में अध्वदर्शक स्वर, वादी-संवादी और पूर्वांग-उत्तरांग का
महत्व
४. उत्तर भारतीय सप्तक से ३२ थाटों की रचना, आधुनिक थाटों के
प्राचीन नाम, तिरोभाव-आविर्भाव, अल्पत्व-बहुत्व.
५. रागों का सूक्ष्म तुलनात्मक अध्ययन, राग-पहचान
६. विष्णु दिगंबर और भातखंडे दोनों स्वर्लिपियों का तुलनात्मक
अध्ययन. गीतों को दोनों पद्धति में लिखने का अभ्यास. धमार, ध्रुपद को दून तिगुन व
चौगुन स्वरलिपि में लिखना.
७. भरत, अहोबल, व्यंकटमखि तथा मानसिंह का जीवन-चरित्र और उनके
संगीत कार्यों का विवरण.
८. पाठ्यक्रम के सभी तालों की दुगुन, तिगुन, चौगुन प्रारंभ
करने का स्थान गणित द्वारा निकालने की विधि. दुगुन, तिगुन तथा चौगुन के अतिरिक्त
अन्य विभिन्न लयकारियों को ताल-लिपि में लिखने का अभ्यास
Thursday, May 3, 2018
खाली : परिभाषा
खाली -
ताल देते समय जहाँ विभाग की प्रथम मात्र पर ध्वनि न करके केवल हाथ हिलाकर इशारा कर देते हैं, उसे 'खाली' कहते हैं. अधिकतर खाली ताल के बीच की मात्र अथवा उसके आस पास हीं कहीं पड़ती है.
उदाहरनार्थ तीन ताल में ९वी मात्रा में हाथ को हवा में हिलाकर खाली दिखाया जाता है.
अन्य परिभाषाये देखें-
taali ताली
sam सम
dhwani ध्वनि
naad नाद
ताल देते समय जहाँ विभाग की प्रथम मात्र पर ध्वनि न करके केवल हाथ हिलाकर इशारा कर देते हैं, उसे 'खाली' कहते हैं. अधिकतर खाली ताल के बीच की मात्र अथवा उसके आस पास हीं कहीं पड़ती है.
उदाहरनार्थ तीन ताल में ९वी मात्रा में हाथ को हवा में हिलाकर खाली दिखाया जाता है.
अन्य परिभाषाये देखें-
taali ताली
sam सम
dhwani ध्वनि
naad नाद
ताली : परिभाषा
ताली -
सम के अलावा अन्य विभागों की पहली मात्रा पर जहाँ हथेली पर दुसरे हाथ की हथेली के आघात द्वारा ध्वनि उत्पन्न की जाती है, उसे ताली कहते हैं.
उदाहरनार्थ तीन ताल में १, ३, एवं ८ पर ताली दी जाती है.
अन्य परिभाषाये देखें-
taali ताली
sam सम
dhwani ध्वनि
naad नाद
सम के अलावा अन्य विभागों की पहली मात्रा पर जहाँ हथेली पर दुसरे हाथ की हथेली के आघात द्वारा ध्वनि उत्पन्न की जाती है, उसे ताली कहते हैं.
उदाहरनार्थ तीन ताल में १, ३, एवं ८ पर ताली दी जाती है.
अन्य परिभाषाये देखें-
taali ताली
sam सम
dhwani ध्वनि
naad नाद
सम : परिभाषा
सम -
किसी भी ताल विभाग की प्रथम मात्रा पर जो ताली पड़ती है, उसे 'सम' की संज्ञा देते हैं. गायन-वादन और नृत्य में सदा सम पर जोर देने की प्रथा है. यही वह स्थान है, जहाँ से प्रत्येक ताल का ठेका प्रारम्भ होता है.
उदाहरनार्थ तीन ताल में १ पर सम दिखाया जाता है.
अन्य परिभाषाये देखें-
taali ताली
sam सम
dhwani ध्वनि
naad नाद
किसी भी ताल विभाग की प्रथम मात्रा पर जो ताली पड़ती है, उसे 'सम' की संज्ञा देते हैं. गायन-वादन और नृत्य में सदा सम पर जोर देने की प्रथा है. यही वह स्थान है, जहाँ से प्रत्येक ताल का ठेका प्रारम्भ होता है.
उदाहरनार्थ तीन ताल में १ पर सम दिखाया जाता है.
अन्य परिभाषाये देखें-
taali ताली
sam सम
dhwani ध्वनि
naad नाद
देशी संगीत : परिभाषा
प्राचीनकाल में संगीतज्ञों ने शाश्त्रीय संगीत को दो विभागों में बाँट दिया-
१.मार्गी संगीत
२. देशी संगीत या गान
२.देशी संगीत या गान -
कालांतर में यह अनुभव किया गया कि ईश्वर-प्राप्ति के अतिरिक्त संगीत में मनोरंजन करने की सीमाहीन शक्ति है. तभी से मार्गी संगीत के अलावा संगीत का दूसरा रूप अर्थात देशी संगीत प्रचार में आया. देशी संगीत का उद्देश्य जन-मन रंजन है. इसमें लोक-रूचि और देश-काल के अनुसार कई परिवर्तन भी हुए हैं. और निरंतर होते रहेंगे. इसके नियम मार्गी संगीत की तरह कड़े नहीं है, और इसीलिए इसमें स्वतंत्रता भी अधिक है. मार्गी संगीत अब प्रचार में नहीं हैं.
संपूर्ण भारत में आजकल देशी संगीत का प्रचार है. भारत में देशी संगीत की दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं-
१. हिन्दुस्तानी संगीत अथवा उत्तरी भारतीय संगीत.
२. कर्णाटक संगीत अथवा दक्षिणी भारतीय संगीत.
१.मार्गी संगीत
२. देशी संगीत या गान
२.देशी संगीत या गान -
कालांतर में यह अनुभव किया गया कि ईश्वर-प्राप्ति के अतिरिक्त संगीत में मनोरंजन करने की सीमाहीन शक्ति है. तभी से मार्गी संगीत के अलावा संगीत का दूसरा रूप अर्थात देशी संगीत प्रचार में आया. देशी संगीत का उद्देश्य जन-मन रंजन है. इसमें लोक-रूचि और देश-काल के अनुसार कई परिवर्तन भी हुए हैं. और निरंतर होते रहेंगे. इसके नियम मार्गी संगीत की तरह कड़े नहीं है, और इसीलिए इसमें स्वतंत्रता भी अधिक है. मार्गी संगीत अब प्रचार में नहीं हैं.
संपूर्ण भारत में आजकल देशी संगीत का प्रचार है. भारत में देशी संगीत की दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं-
१. हिन्दुस्तानी संगीत अथवा उत्तरी भारतीय संगीत.
२. कर्णाटक संगीत अथवा दक्षिणी भारतीय संगीत.
मार्गी संगीत : परिभाषा
प्राचीनकाल में संगीतज्ञों ने शास्त्रीय संगीत को दो विभागों में बाँट दिया-
१. मार्गी संगीत
२. देशी संगीत या गान
१. मार्गी संगीत - वैदिकयुग में ऋषियों ने जब देखा कि संगीत में मन को एकाग्र करने की अत्यंत प्रभावशाली शक्ति है, तभी से इस कला का प्रयोग परमेश्वर प्राप्ति के प्रमुख साधन के रूप में करने लगे.
'ॐ' शब्द में हीं उन्हें ब्रह्म-नाद की प्राप्ति होती दिख पड़ी. संगीत का उद्देश्य ब्रह्म-नाद को अनुभव करना था. इस संगीत को कड़े नियमों में बाँधने का प्रयत्न किया गया.
भरत मुनि ने इसी ''नियम-बद्ध संगीत को जो ईश्वर-प्राप्ति का साधन माना जाता है, मार्गी संगीत कह कर पुकारा.''
१. मार्गी संगीत
२. देशी संगीत या गान
१. मार्गी संगीत - वैदिकयुग में ऋषियों ने जब देखा कि संगीत में मन को एकाग्र करने की अत्यंत प्रभावशाली शक्ति है, तभी से इस कला का प्रयोग परमेश्वर प्राप्ति के प्रमुख साधन के रूप में करने लगे.
'ॐ' शब्द में हीं उन्हें ब्रह्म-नाद की प्राप्ति होती दिख पड़ी. संगीत का उद्देश्य ब्रह्म-नाद को अनुभव करना था. इस संगीत को कड़े नियमों में बाँधने का प्रयत्न किया गया.
भरत मुनि ने इसी ''नियम-बद्ध संगीत को जो ईश्वर-प्राप्ति का साधन माना जाता है, मार्गी संगीत कह कर पुकारा.''
Wednesday, May 2, 2018
Sharma Musical Store One Bellow 39 Keys Female Reed Linden Wood Harmonium
Material: Wood Number of Keys: 39 Two side carry handles, jaali frame on keys There might be minor colour variation between actual product and image shown on screen due to lighting on the photography |
Friday, April 6, 2018
Wednesday, April 4, 2018
राग यमन का परिचय
राग यमन का परिचय
प्रथम पहर निशि गाइये ग नि को कर संवाद।
जाति संपूर्ण तीवर मध्यम यमन आश्रय राग ॥
जाति संपूर्ण तीवर मध्यम यमन आश्रय राग ॥
राग का परिचय -
1) इस राग को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है (जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो)। मुगल शासन काल के दौरान, मुसलमानों ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना शुरु किया।
2) इस राग की विशेषता है कि इसमें तीव्र मध्यम का प्रयोग किया जाता है। बाक़ी सभी स्वर शुद्ध लगते हैं।
3) इस राग को रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या समय गाया-बजाया जाता है। इसके आरोह और अवरोह में सभी स्वर प्रयुक्त होते हैं, अत: इसकी जाति हुई संपूर्ण-संपूर्ण ।
4) वादी स्वर है- ग संवादी - नि
आरोह- ऩि रे ग, म॑ प, ध नि सां।
अवरोह- सां नि ध प, म॑ ग रे सा।
पकड़- ऩि रे ग रे, प रे, ऩि रे सा।
अवरोह- सां नि ध प, म॑ ग रे सा।
पकड़- ऩि रे ग रे, प रे, ऩि रे सा।
विशेषतायें-
१) यमन और कल्याण भले ही एक राग हों मगर यमन और कल्याण दोनों के नाम को मिला देने से एक और राग की उत्पत्ति होती है जिसे राग यमन-कल्याण कहते हैं जिसमें दोनों मध्यम का प्रयोग होता है।
२) यमन को मंद्र सप्तक के नि से गाने-बजाने का चलन है। ऩि रे ग, म॑ ध नि सां
३) इस राग में ऩि रे और प रे का प्रयोग बार बार किया जाता है।
४) इस राग को गंभीर प्रकृति का राग माना गया है।
५) इस राग को तीनों सप्तकों में गाया-बजाया जाता है।
इस राग में कई मशहूर फ़िल्मी गाने भी गाये गये हैं।
१. सरस्वती चंद्र से- चंदन सा बदन, चंचल चितवन
२. राम लखन से- बड़ा दुख दीन्हा मेरे लखन ने
३. चितचोर से- जब दीप जले आना
४. भीगी रात से- दिल जो न कह सका वो ही राज़े दिल
५. राजा हिन्दुस्तानी - आये हो मेरी जिन्दगी में
६. परवरीश - आँसू भरी है ये जीवन की राहें
७. जंगली - एहसान तेरा होगा मुझपर
८. पापा कहते हैं - घर से निकलते हीं
९. पाक़िजा - इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा
१०. पाकिजा - मौसम है आशिकाना
११. अनपढ़ - जीया ले गयो जी मोरा सांवरिया
१२. रिफ्यूजी - मेरे हमसफर मेरे हमसफर मेरे पास
१३. दिल हीं तो है - निगाहें मिलाने को जी चाहता
१४. तीसरी कसम - पान खाये संईया हमार
१५. चित्रलेखा - संसार से भागे फिरते हो
१६. सारंगा - सारंगा तेरी याद में
१७. भजन - श्री रामचंद्र कृपालू भजमन
१८. दीवाना - सोंचेंगे तुम्हें प्यार करें के नहीं
१९. लीडर - तेरे हुस्न की क्या तारीफ करूं
२०. दिल हीं तो है - तुम अगर मुझको
२१. तुम बिन जीवन कैसे बीता
२२. पारसमणी - वो जब याद आये
२३. खामोशी - वो शाम कुछ अजीब थी
२४. हक़ीकत - ज़रा सी आहट होती है
२५. बरसात की रात - जिन्दगी भर नहीं भूलेगी
२. राम लखन से- बड़ा दुख दीन्हा मेरे लखन ने
३. चितचोर से- जब दीप जले आना
४. भीगी रात से- दिल जो न कह सका वो ही राज़े दिल
५. राजा हिन्दुस्तानी - आये हो मेरी जिन्दगी में
६. परवरीश - आँसू भरी है ये जीवन की राहें
७. जंगली - एहसान तेरा होगा मुझपर
८. पापा कहते हैं - घर से निकलते हीं
९. पाक़िजा - इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा
१०. पाकिजा - मौसम है आशिकाना
११. अनपढ़ - जीया ले गयो जी मोरा सांवरिया
१२. रिफ्यूजी - मेरे हमसफर मेरे हमसफर मेरे पास
१३. दिल हीं तो है - निगाहें मिलाने को जी चाहता
१४. तीसरी कसम - पान खाये संईया हमार
१५. चित्रलेखा - संसार से भागे फिरते हो
१६. सारंगा - सारंगा तेरी याद में
१७. भजन - श्री रामचंद्र कृपालू भजमन
१८. दीवाना - सोंचेंगे तुम्हें प्यार करें के नहीं
१९. लीडर - तेरे हुस्न की क्या तारीफ करूं
२०. दिल हीं तो है - तुम अगर मुझको
२१. तुम बिन जीवन कैसे बीता
२२. पारसमणी - वो जब याद आये
२३. खामोशी - वो शाम कुछ अजीब थी
२४. हक़ीकत - ज़रा सी आहट होती है
२५. बरसात की रात - जिन्दगी भर नहीं भूलेगी