प्राचीनकाल में संगीतज्ञों ने शास्त्रीय संगीत को दो विभागों में बाँट दिया-
१. मार्गी संगीत
२. देशी संगीत या गान
१. मार्गी संगीत - वैदिकयुग में ऋषियों ने जब देखा कि संगीत में मन को एकाग्र करने की अत्यंत प्रभावशाली शक्ति है, तभी से इस कला का प्रयोग परमेश्वर प्राप्ति के प्रमुख साधन के रूप में करने लगे.
'ॐ' शब्द में हीं उन्हें ब्रह्म-नाद की प्राप्ति होती दिख पड़ी. संगीत का उद्देश्य ब्रह्म-नाद को अनुभव करना था. इस संगीत को कड़े नियमों में बाँधने का प्रयत्न किया गया.
भरत मुनि ने इसी ''नियम-बद्ध संगीत को जो ईश्वर-प्राप्ति का साधन माना जाता है, मार्गी संगीत कह कर पुकारा.''
१. मार्गी संगीत
२. देशी संगीत या गान
१. मार्गी संगीत - वैदिकयुग में ऋषियों ने जब देखा कि संगीत में मन को एकाग्र करने की अत्यंत प्रभावशाली शक्ति है, तभी से इस कला का प्रयोग परमेश्वर प्राप्ति के प्रमुख साधन के रूप में करने लगे.
'ॐ' शब्द में हीं उन्हें ब्रह्म-नाद की प्राप्ति होती दिख पड़ी. संगीत का उद्देश्य ब्रह्म-नाद को अनुभव करना था. इस संगीत को कड़े नियमों में बाँधने का प्रयत्न किया गया.
भरत मुनि ने इसी ''नियम-बद्ध संगीत को जो ईश्वर-प्राप्ति का साधन माना जाता है, मार्गी संगीत कह कर पुकारा.''
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