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Wednesday, April 29, 2020
राग दुर्गा का परिचय
वादी: ध
संवादी: रे
थाट: BILAWAL
आरोह: सारेमपधसां
अवरोह: सांधपमरेसा
पकड़: मपध म रेपम रेधसा
रागांग: उत्तरांग
जाति: AUDAV-AUDAV
समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेष: कर्नाटिक संगीत में यह शुद्धसावेरी नाम से प्रचलित है। वर्जित-ग नि। कुछ लोग vadi-M samvadi-S मानते हैं। इसमें धम रेप रेध की संगति विशेष है।
राग शुद्ध सारंग का परिचय
वादी: रे
संवादी: प
थाट: KALYAN
आरोह: निसारेम॓प धम॓पनिसां
अवरोह: सांनिधपम॓प मरेसा
पकड़: रेम॓प म-रे साऩिध़सा ऩिरेसा
रागांग: पूर्वांग
जाति: SHADAV-SHADAV
समय: दिन का द्वितीय प्रहर
विशेष: न्यास - रे प नि यह सारंग का प्रकार है। इसमें अवरोह में दोनो मध्यम लगते हैं। स्वर-विस्तार मन्द्र और मध्य में होता है।
राग चन्द्रकौंस का परिचय
वादी: म
संवादी: सा
थाट: BHAIRAVI
आरोह: साग॒मध॒निसां
अवरोह: सांनिध॒मग॒मग॒सा
पकड़: ग॒म ग॒सानिसा
रागांग: पूर्वांग
जाति: AUDAV-AUDAV
समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेष: न्यास- ग॒ म नि। वर्जित-आरोह में रे प। मालकोश में नि शुद्ध लगाने से चन्द्रकोश होता है। इससे बचने के लिये शुद्ध नि का बारंबार प्रयोग होता है। तीनो सप्तक में विस्तार किया जाता है।
राग भटियार का परिचय
वादी: म
संवादी: सा
थाट: MARWA
आरोह: सानिधनिपम पग म॓धसां
अवरोह: सांध धप धनिपम पग म॓गरेसा
पकड़: धपम पग रे॒सा
रागांग: पूर्वांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: रात्रि का तृतीय प्रहर
विशेष: न्यास-सा म प। अल्पत्व-म॓। यह मांड( धमपग) एवं भंखार (पगरे॒सा) का मिश्रण है। दोनो से बचाव के लिये साम,पध का प्रयोग। चलन वक्र। पगरे॒सा से इस राग का स्वरूप व्यक्त होता है।
राग जैतश्री का परिचय
वादी: ग
संवादी: नि
थाट: PURVI
आरोह: सागम॓पनिसां
अवरोह: सानिध॒पम॓गम॓गरे॒सा
पकड़: पध॒प म॓गम॓गरे॒सा
रागांग: उत्तरांग
जाति: AUDAV-SAMPURN
समय: रात्रि का प्रथम प्रहर
विशेष: न्यास-ग प वर्जित - आरोह में ऋषभ धैवत पूर्वांग में जैत और उत्तरांग में श्री राग व्यक्त होता है।
Monday, April 27, 2020
राग बिहाग का परिचय
वादी: ग
संवादी: नि
थाट: BILAWAL
आरोह: ऩिसागमपनिसां
अवरोह: सांनिधप म॓पगमग रेसा
पकड़: पम॓गमग रेसा
रागांग: उत्तरांग
जाति: AUDAV-SAMPURN
समय: रात्रि का प्रथम प्रहर
विशेष: सदृश- यमन कल्याण। तीनो सप्तक में चलन। विवादी-म॓; वर्जित- आरोह में रे ध;
Sunday, April 26, 2020
राग कलिंगड़ा का परिचय
वादी: प
संवादी: सा
थाट: BHAIRAV
आरोह: सारे॒गम पध॒निसां
अवरोह: सांनिध॒प मगरे॒सा
पकड़: ध॒प गमग ऩि सारे॒ग म
रागांग: पूर्वांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: रात्रि का तृतीय प्रहर
विशेष: ऋषभ एवं धैवत पर कम आन्दोलन। न्यास- सा ग प।
Friday, April 24, 2020
कंपन की परिभाषा
द्रुतार्धमान वेगेन कम्पितं गमकं विदुः।
अर्थात द्रुतलय की आधी गति से कम्पन होने से कम्पित स्वर माना जाता है जिसे गामक भी कहते हैं।स्वरों को हिलाने से कम्पन होता है। सितार में जिस स्वर का कम्पन करना हो, उस स्वर के परदे पर बाएं हाथ की अंगुली (मध्यमा या तर्जनी) से तार को दबा कर दाहिने हाथ की तर्जनी से तर को मिजराब से ठोंक कर फिर हलके-हलके बाएं हाथ की अंगुली को हिलाने से जो स्वर उत्पन्न होता है, उसे कम्पन कहते हैं। यह एक प्रकार का Gamak गमक है।
श्रुति की परिभाषा
नित्यम् गितोपयोगित्वंभिज्ञेयत्वमप्युत।
लक्ष्यविद्भिः समादिष्टं पर्याप्तं श्रुतिलक्ष्नम्।।
- तीव्रा
- कुमुद्वती
- मंदा
- छंदोवती
- दयावती
- रंजनी
- रक्तिका
- रौद्री
- क्रोधी
- वज्रिका
- प्रसारिणी
- प्रीति
- माजनी
- क्षिति
- रक्ता
- संदीपनी
- आलापिनी
- मदन्ती
- रोहिणी
- रम्या
- उग्रा
- क्षोभिणी