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Sunday, January 5, 2025

Aakarsh - Sulat Prahar

 आकर्ष या सुलट प्रहार:

Apkarsh or Ulat Prahar

 अपकर्ष या उलट प्रहार :

Bol in Sitar

बोल (सितार वादन में )

सितार वादन मिज़राब द्वारा होता है. अतएव मिजराब प्रहार से उत्पन्न होने वाली विभिन्न ध्वनियों को बोल कहते हैं. मुख्य बोल दो होते हैं - 'दा ' और 'रा '. दा और  रा को दुगुन ले में क्रम से दारा बजाते हैं. तो वह दिर कहलाता है. प्रायः दा , रा और दिर इन्हीं तीन बोलों पर सितार का सम्पूर्ण बाज निर्भर होता है।  इन्हीं तीन बोलों से अन्य अनेक बोल बना लिए जाते हैं जैसे : दार, द्रा, द्रार्दा, दिर दिर, दार दार ददार, दरार आदि। 

Wednesday, April 29, 2020

राग सुर मल्हार का परिचय

वादी: 
संवादी: सा
थाट: KAFI
आरोह: सारेमपनिसां
अवरोह: सांनि॒प मपनि॒धप मरेऩिसा
पकड़: सारेप मनि॒मप नि॒धपम रेसा
रागांग: उत्तरांग
जाति: AUDAV-SHADAV
समय: दिन का द्वितीय प्रहर
विशेष: न्यास-सा म प। यह मल्हार का एक प्रकार है। आरोह में नि और अवरोह में नि॒ का प्रयोग होता है। सारंग से बचने केलिये ध का प्रयोग। सदृश-वृन्दावनी सारंग, सोरठ, सामंत।

राग दुर्गा का परिचय

वादी: 
संवादी: रे
थाट: BILAWAL
आरोह: सारेमपधसां
अवरोह: सांधपमरेसा
पकड़: मपध म रेपम रेधसा
रागांग: उत्तरांग
जाति: AUDAV-AUDAV
समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेष: कर्नाटिक संगीत में यह शुद्धसावेरी नाम से प्रचलित है। वर्जित-ग नि। कुछ लोग vadi-M samvadi-S मानते हैं। इसमें धम रेप रेध की संगति विशेष है।

राग शुद्ध सारंग का परिचय

वादी: रे
संवादी: 
थाट: KALYAN
आरोह: निसारेम॓प धम॓पनिसां
अवरोह: सांनिधपम॓प मरेसा
पकड़: रेम॓प म-रे साऩिध़सा ऩिरेसा
रागांग: पूर्वांग
जाति: SHADAV-SHADAV
समय: दिन का द्वितीय प्रहर
विशेष: न्यास - रे प नि यह सारंग का प्रकार है। इसमें अवरोह में दोनो मध्यम लगते हैं। स्वर-विस्तार मन्द्र और मध्य में होता है।

राग चन्द्रकौंस का परिचय

वादी: 
संवादी: सा
थाट: BHAIRAVI
आरोह: साग॒मध॒निसां
अवरोह: सांनिध॒मग॒मग॒सा
पकड़: ग॒म ग॒सानिसा
रागांग: पूर्वांग
जाति: AUDAV-AUDAV
समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेष: न्यास- ग॒ म नि। वर्जित-आरोह में रे प। मालकोश में नि शुद्ध लगाने से चन्द्रकोश होता है। इससे बचने के लिये शुद्ध नि का बारंबार प्रयोग होता है। तीनो सप्तक में विस्तार किया जाता है।

राग भटियार का परिचय

वादी: 
संवादी: सा
थाट: MARWA
आरोह: सानिधनिपम पग म॓धसां
अवरोह: सांध धप धनिपम पग म॓गरेसा
पकड़: धपम पग रे॒सा
रागांग: पूर्वांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: रात्रि का तृतीय प्रहर
विशेष: न्यास-सा म प। अल्पत्व-म॓। यह मांड( धमपग) एवं भंखार (पगरे॒सा) का मिश्रण है। दोनो से बचाव के लिये साम,पध का प्रयोग। चलन वक्र। पगरे॒सा से इस राग का स्वरूप व्यक्त होता है।

राग जैतश्री का परिचय

वादी: 
संवादी: नि
थाट: PURVI
आरोह: सागम॓पनिसां
अवरोह: सानिध॒पम॓गम॓गरे॒सा
पकड़: पध॒प म॓गम॓गरे॒सा
रागांग: उत्तरांग
जाति: AUDAV-SAMPURN
समय: रात्रि का प्रथम प्रहर
विशेष: न्यास-ग प वर्जित - आरोह में ऋषभ धैवत पूर्वांग में जैत और उत्तरांग में श्री राग व्यक्त होता है।