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Wednesday, May 23, 2018

Raga Bageshree


The program was at Swamijee's Paitric Abas, Vivekananda Road on 25.12.2017

Sri Dipankar Chaudhuri : Sarod
Sri Dishari Chakraborty : Santoor
Sri Nishaant Singh : Pakhwaj

By Sri Deepankar Choudhury on Sarod

Wednesday, May 16, 2018

नाद की विशेषताये

नाद की विशेषताएं

नाद की मुख्य तीन विशेषताएं हैं - 

१. नाद की ऊँचाई-निचाई
२. नाद का छोटा-बड़ापन
३. नाद की जाति अथवा गुण

१. नाद की ऊँचाई-निचाई

गाते बजाते समय हम यह अनुभव करते हैं कि बारहों स्वर एक दुसरे से ऊँचे नीचे हैं. स्वर अथवा नाद की ऊंचाई-निचाई आन्दोलन-संख्या पर आधारित होती है. अधिक आन्दोलन-संख्या वाला स्वर ऊँचा और इसके विपरीत कम आन्दोलन वाला स्वर नीचा होता है. गाते-बजाते समय ऐसा सहज हीं अनुभव की जा सकती है कि सा से ऊँचा ग होता है, जिसका अर्थ है कि ग की आन्दोलन सा से अधिक होगी. इसी प्रकार ग से नीचा रे होता है. अतः रे की आन्दोलन ग से कम होगी.

२. नाद का छोटा-बड़ापन

क्रियात्मक संगीत में यह स्वतः हीं अनुभव किया जा सकता है कि धीरे से उच्चारण करने पर स्वर थोड़ी दूर तक और जोर से की गई उच्चारण अधिक दुरी तक सुनाई पड़ता है. इसे संगीत में नाद का छोटा-बड़ापन कहते हैं. छोटा नाद कम दुरी तक और धीमा सुनाई पड़ता है और बड़ा नाद अधिक दूरी तक स्पष्ट सुनाई पड़ता है. तानपूरे के तार को धीरे से आघात करने में तार के आन्दोलन की चौड़ाई कम होगी अर्थात तार कम दूरी तक ऊपर-निचे कम्पन्न करेगा और फलस्वरूप छोटा नाद उत्पन्न होगा. इसके विपरीत तार को जोर से छेड़ने से तार के आन्दोलन की चौड़ाई अधिक होगी और बड़ा नाद उत्पन्न होगा. इस प्रकार स्पस्ट है की नाद का छोटा-बड़ापन आन्दोलन की चौड़ाई पर निर्भर है.

३. नाद की जाति अथवा गुण


प्रत्येक वाद्य का स्वर एक दूसरे से अलग होता है. जैसे कि सितार का स्वर बेला से और बेला का स्वर हारमोनियम से और हारमोनियम का स्वर सरोद से भिन्न होता है. इस लिए दूर से आती हुई संगीत ध्वनि को हम पहचान लेते हैं कि ध्वनि किस वाद्य की है. विभिन्न वाद्यों के स्वरों में भिन्नता होते का कारण यह है कि प्रत्येक वाद्य के सहायक नादों की संख्या, उनका क्रम और प्राबल्य एक दूसरे से भिन्न होता है. इसी को नाद की जाति अथवा गुण कहते हैं. ऐसा मानना है कि कोई भी नाद अकेला उताण नहीं होता, उसके साथ कुछ अन्य नाद भी उत्पन्न हुआ करते हैं, जिन्हें केवल अनुभवी कान हीं सुन सकते हैं. ऐसे स्वतः उत्पन्न होने वाले स्वरों को सहायक नाद कहते हैं. सहायक नादों की संख्या, क्रम और प्राबल्य पर नाद की जाति आधारित होती है.

Tuesday, May 8, 2018

Raag parichay

Raag Parichay from Part 1 to Part 4

Raag Parichaya by Pdt Harish Chandra Shrivastava set of 4 books part I to IV Indian Music Theory Book, Best book for Theory study in Indian Music in Hindi

Product details

Paperback
Language: Hindi
ASIN: B00LEANUUC
Package Dimensions: 17.8 x 12.7 x 5.3 cm


by Shri Harish Chandra Srivastava
Raag Parichay from Part 1
by Shri Harish Chandra Srivastava

Sangeet Visharad (Hindi)

Sangeet visharad


by Vasant

Famous book "Sangeet Visharad", Indian Music Theory Book, Best book for Indian Music in Hindi covers all the topics of Indian Music.

Product details

Hardcover: 785 pages
Publisher: Sangeet Karyalay; 28th edition (2013)
Language: Hindi
ISBN-10: 8185057001
ISBN-13: 978-8185057002
Package Dimensions: 23.2 x 16.7 x 2.8 cm


Sixth Year - Sangeet Prabhakar - Vocal


प्रयाग संगीत समिति, इलाहबाद का पाठ्यक्रम.

षष्ठम वर्ष/संगीत प्रभाकर (Sixth Year/Sangeet Prabhakar)

क्रियात्मक परीक्षा २०० अंकों की और दो प्रश्न-पत्र ५०-५० अंकों के. पिछले वर्षों का पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है.

क्रियात्मक (Practical)

१.      राग पहचान में निपुणता और अल्पत्व-बहुत्व, तिरोभाव-आविर्भाव और समता-विभिन्नता दिखाने के लिए पूर्व वर्षों के सभी रागों का प्रयोग हो सकता है, इसलिए सभी का विशेष विस्तृत अध्ययन आवश्यक है.
२.      गाने में विशेष तैयारी, आलाप-तान में सफाई महफिल के गाने में निपुणता.
३.      ठप्पा, ठुमरी, तिरवट और चतुरंग गीतों का परिचय, इनमे से किन्हीं दो गीतों को जानना आवश्यक है.
४.      रामकली, मियाँ मल्हार, परज, बसंती, राग श्री, पूरिया धनाश्री, ललित, शुद्ध कल्याण, देशी और मालगुन्जी रागों में एक-एक बड़ा-ख्याल और छोटा ख्याल पूर्ण तैयारी के साथ. किन्हीं दो रागों में एक-एक धमार, एक-एक ध्रुपद और एक-एक तराना जानना आवश्यक है. प्रथम वर्ष से षष्ठम वर्ष एस के रागों में से किसी एक चतुरंग.
५.      काफी, पीलू, पहाड़ी, झिंझोटी, भैरवी तथा खमाज इनमे से किन्हीं दो रागों में दो ठुमरी.
६.      लक्ष्मी ताल, ब्रह्म ताल तथा रूद्र ताल – इनका पूर्ण परिचय तथा इनको पिछली लयकारियों में हाथ से ताली देकर लिखने का अभ्यास.

प्रथम प्रश्नपत्र - शास्त्र (First Paper - Theory)

१.      प्रथम से छठे वर्ष के सभी रागों का विस्तृत, तुलनात्मक और सूक्ष्म परिचय. उनके आलाप-तान आदि स्वरलिपि में लिखने का पूर्ण अभ्यास. समप्रकृति रागों में समता-विभिन्नता दिखाना.
२.      विभिन्न राओं में अल्पत्व-बहुत्व, अन्य रागों की छाया आदि दिखाते हुए आलाप-तान स्वरलिपि में लिखना.
३.      कठिन लिखित स्वर समूहों द्वारा राग पहचानना.
४.      दिए हुए रागों में नए सरगम बनाना. दी हुई कविता को राग में ताल-बद्ध करने का ज्ञान.
५.      गीतों की स्वरलिपि लिखना, धमार, ध्रुपद को दुगुन, तिगुन, चौगुन, और आड़ आदि लयकारियों में लिखना.
६.      ताल के ठेके को विभिन्न लयकारियों में लिखना.
७.      कुछ लेख रेज – जीवन में संगीत की आवश्यकता, महफ़िल की गायकी, शास्त्रीय संगीत का जनता पर प्रभाव, रेडियो और सिनेमा-संगीत, पृष्ठ संगीत (background music), हिन्दुस्तानी संगीत और वृंदवादन, हिन्दुस्तानी संगीत की विशेषताये, स्वर का लगाव, संगीत और स्वरलिपि इत्यादि.
८.      हस्सू-हद्दू खां, फैयाज़ खां, अब्दुल करीम खां, बड़े गुलाम अली और ओंकारनाथ ठाकुर का जीवन परिचय और कार्य.

द्वितीय प्रश्नपत्र शुद्ध शास्त्र (Second Paper - Theory)

१.      पिछले सभी वर्षों के शास्त्र सम्बंधित विषयों का सूक्ष्म तथा विस्तृत अध्ययन.
२.      मध्य कालीन तथा आधुनिक संगीतज्ञों के स्वर स्थानों की आन्दोलन-संख्याओं की सहायता तथा तार की लम्बाई की सहायता से तुलना. पाश्चात्य स्वर-सप्तक की रचना, सरल गुणान्तर और शुभ स्वर संवाद के नियम, पाश्चात्य स्वरों की आन्दोलन-संख्या, हिन्दुस्तानी स्वरों में स्वर संवाद, कर्नाटकी ताल पद्धति और हिन्दुस्तानी ताल पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन. संगीत का संक्षिप्त क्रमिक इतिहास, ग्राम, मूर्छना (अर्थ में क्रमिक परिवर्तन), मूर्छना और आधुनिक थाट, कलावंत, पंडित, नायक, वाग्गेयकार, बानी (खंडार, डागुर, नौहार, गोबरहार), गीति, गीति के प्रकार, गमक के विविध प्रकार, हिन्दुस्तानी वाद्यों के विविध प्रकार. (तत, अवनद्ध, घन, सुषरी)
३.      निम्नलिखित विषयों का ज्ञान – तानपुरे से उत्पन्न होने वाले सहायक नाद, पाश्चात्य सच्चा स्वर-सप्तक (Diatonic Scale) को (Equally Tempered Scale) में परिवर्तित होने का कारन व विवरण, मेजर, माईनर और सेमिटोन, पाश्चात्य आधुनिक स्वरों के गुण-दोष, हारमोनियम पर एक आलोचनात्मक दृष्टि, तानपुरे से निकलने वाले स्वरों के साथ हमारे आधुनिक स्वर-स्थानों का मिलान. प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक राग-वर्गीकरण, उनका महत्त्व, और उनके विभिन्न प्रकारों को पारस्परिक तुलना, संगीत-कला और शास्त्र का पारस्परिक सम्बन्ध. भरत की श्रुतियाँ सामान थीं अथवा भिन्न थीं-इस पर विभिन्न विद्वानों के विचार और तर्क. सारणा चतुष्टई का अध्ययन, उत्तर भारतीय संगीत को ‘संगीत पारिजात’ की दें, हिन्दुस्तानी और कर्नाटकी संगीत-पद्धतियों की तुलना, उनके स्वर, ताल और रागों का मिलन करते हुए पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धति का साधारण ज्ञान, संगीत के घरानों का संक्षिप्त ज्ञान, रत्नाकर के दस विधि राग वर्गीकरण-भाषा, विभाषा इत्यादि.
४.      भातखंडे और विष्णु दिगंबर स्वर-लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन और उनकी त्रुटी और उन्नति के सुझाव.
५.      लेख-भावी संगीत के समुचित निर्माण के लिए सुझाव, हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति के मुख्या सिद्धांत. प्राचीन और आधुनिक प्रसिद्द संगीतज्ञों का परिचय तथा उनकी शैली. संगीत का मानव जीवन पर प्रभाव, संगीत और चित्त (Mind and Music) स्कूलों द्वारा संगीत शिक्षा की त्रुटियों और उन्नति के सुझाव, संगीत और स्वर साधन.


Monday, May 7, 2018

Fifth year - Vocal


प्रयाग संगीत समिति, इलाहबाद का पाठ्यक्रम.


पंचम वर्ष (Fifth Year)

क्रियात्मक परीक्षा १०० अंकों की और एक प्रश्न-पत्र ५० अंकों का, पिछले वर्षों का पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है.

क्रियात्मक (PRACTICAL)

१.      कुछ कठिन लयकारियों को ताली देकर दिखाना. दो मात्रा में ३ मात्रा बोलना और ३ में ४ मात्रा बोलना      इत्यादि.
२.      नोम-तोम के आलाप का विशेष अभ्यास
३.      पुरिया, गौड़ मल्हार, छायानट, श्री, हिंडोल, गौड़ सारंग, विभास, दरबारी कान्हड़ा, तोड़ी, अड़ाना इन रागों में १-१ विलंबित और १-१ द्रुत ख्याल पूर्णतया सुंदर गायकी के साथ. किन्हीं दो रागों में एक-एक धमार और किन्हीं दो में से एक-एक ध्रुपद जिनमे दुगुन, तिगुन चौगुन और आड़ करना आवश्यक है.
४.      रागों का सुक्ष्म अध्ययन. रागों का तिरोभाव-आविर्भाव का क्रियात्मक प्रयोग.
५.      पंचम सवारी, गजझम्पा, अद्धा, मत्त और  पंजाबी तालों का पूर्ण ज्ञान और इन्हें ठाह, दुगुन तथा चौगुन लयकारियों में ताली देकर बोलना.
६.      तीनताल, झपताल, चारताल, एकताल, कहरवा, तथा दादरा तालों के तबले पर बजने का साधारण अभ्यास.

शास्त्र (THEORY)

१.      पिछले पाठ्यक्रमों का पूर्ण विस्तृत अध्ययन
२.      अनिबद्ध गान के प्राचीन प्रकार – रागालाप, रुपकालाप, आलाप्तिगान, स्वस्थान-नियम, विदारी, राग लक्षण, जाति-गायन और विशेषताएं, सन्यास-विन्यास, गायकी, नायकी, गान्धर्व गीत (देशी-मार्गी) पाठ्यक्रम के रागों में तिरोभाव-आविर्भाव और अल्पत्वा-बहुत्व दिखाना.
३.      श्रुति-स्वर विभाजन के सम्बन्ध में सम्पूर्ण इतिहास को तीन मुख्या कालों में विभाजन (प्राचीन, मध्य, आधुनिक), इन तीनों कालों के ग्रंथकारों के ग्रन्थ और उनमें वर्णित मतों में समय और भेद, षडज पंचम भाव और आन्दोलन संख्या तथा तार की लम्बाई का सम्बन्ध, किसी स्वर की आन्दोलन-संख्या तथा तार की लम्बाई निकालना जबकि षडज की दोनों वस्तुएं प्राप्त हों. इसी, प्रकार तार की लम्बाई दी हुई हो तो आन्दोलन-संख्या निकालना, मध्यकालीन पंडितों और आधुनिक पंडितों के शुद्ध और विकृत स्वरों के स्थानों की तुलना उनके तार की लम्बाईयों की सहायता से करना.
४.      विभिन्न रागों के सरल तालों के सरगम मन से बनाना
५.      इस वर्ष के रागों का विस्तृत अध्ययन तथा उनसे मिलते-जुलते रागों का मिलान, रागों में अल्पत्व-बहुत्व, तिरोभाव-आविर्भाव.
६.      इस वर्ष के तालों का पूर्ण परिचय और उनके ठेकों को विभिन्न लयकारियों में ताल-लिपि में लिखना. गणित द्वारा किसी गीत या ताल की दुगुन, तिगुन आदि प्रारंभ करने का स्थान निश्चित करना.
७.      गीत और उनकी तिगुन और चौगुन स्वरलिपि में लिखना.
८.      निबंध के विषय – राग और रस, संगीत और ललित कलाएं, संगीत और कल्पना, यवन संस्कृति का हिन्दुस्तानी संगीत पर प्रभाव, संगीत व उसका भविष्य, संगीत में वाद्यों का स्थान, लोक संगीत आदि.
९.      गीतों व तालों को किसी भी स्वरलिपि में लिखने का अभ्यास.
१०.  श्रीनिवास, रामामत्य, ह्रदय नारायण देव, मोहम्मद रज़ा, सदारंग-अदारंग का जीवन परिचाल तथा उनका संगीत-कार्य.

Senior Diploma - Vocal


प्रयाग संगीत समिति, इलाहबाद का पाठ्यक्रम.

चतुर्थ वर्ष (Senior Diploma)

क्रियात्मक परीक्षा १०० अंकों की और एक प्रश्न-पत्र ५० अंकों का, पिछले वर्षों का पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है.


क्रियात्मक (Practical)

१.      स्वर ज्ञान का विशेष अभ्यास, कठिन स्वर-समूहों की पहचान.
२.      तानपुरा और तबला मिलाने की विशेष क्षमता.
३.      अंकों या स्वरों के सहारे ताली देकर विभिन्न लयों का प्रदर्शन – द्विगुण (एक मात्रा में दो मात्रा), तिगुन (१ में ३) चौगुन, आड़ (२ में ३) और आड़ की उलटी (३ में २ मात्रा बोलना), (४ में ३) तथा ४ में ५ मात्राओं का प्रदर्शन.
४.      कठिन और सुन्दर आलाप और तानों का अभ्यास.
५.      देशकार, शंकरा, जयजयवंती, कामोद, मारवा, मुल्तानी, सोहनी, बहार, पूर्वी. इन रागों में १-१ विलंबित और द्रुत ख्याल, आलाप, तान, बोलतान सहित.
६.      उक्त रागों में से किन्हीं दो में १-१ ध्रुपद तथा किन्हीं दो में १-१ धमार केवल ठाह, द्विगुण, तिगुन, और चौगुन सहित तथा एक तराना.
७.      ख्याल की गायकी में विशेष प्रवीणता.
८.      टप्पा और ठुमरी के ठेकों का साधारण ज्ञान. जत और आड़ा चारताल को पूर्ण रूप से बोलने का अभ्यास.
९.      स्वर-समूहों द्वारा राग पहचान.
१०.  गाकर रागों में समता-विभिन्नता दिखाना.


शास्त्र (Theory)

१.      गीत के प्रकार – टप्पा, ठुमरी, तराना, तिरवट, चतुरंग, भजन, गीत, गजल आदि गीत के प्रकारों का विस्तृत वर्णन, राग-रागिनी पद्धति आधुनिक आलाप-गायन की विधि, तान के विविध प्रकारों का वर्णन, विवादी स्वर का प्रयोग, निबद्ध गान के प्राचीन प्रकार (प्रबंध, वास्तु आदि) धातु, अनिबद्ध गान.
२.      बाईस श्रुतियों का स्वरों में विभाजन (आधुनिक और प्राचीन मत), खींचे हुए तार की लम्बाई का नाद के ऊँचे-निचेपन से सम्बन्ध.
३.      छायालग और संकीर्ण राग, परमेल प्रवेशक राग, रागों का समय-चक्र, दक्षिणी और उत्तरी हिन्दुस्तानी पद्धतियों के स्वर की तुलना, रागों का समय-चक्र निश्चित करने में अध्वदर्शक स्वर, वादी-संवादी और पूर्वांग-उत्तरांग का महत्व
४.      उत्तर भारतीय सप्तक से ३२ थाटों की रचना, आधुनिक थाटों के प्राचीन नाम, तिरोभाव-आविर्भाव, अल्पत्व-बहुत्व.
५.      रागों का सूक्ष्म तुलनात्मक अध्ययन, राग-पहचान
६.      विष्णु दिगंबर और भातखंडे दोनों स्वर्लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन. गीतों को दोनों पद्धति में लिखने का अभ्यास. धमार, ध्रुपद को दून तिगुन व चौगुन स्वरलिपि में लिखना.
७.      भरत, अहोबल, व्यंकटमखि तथा मानसिंह का जीवन-चरित्र और उनके संगीत कार्यों का विवरण.
८.      पाठ्यक्रम के सभी तालों की दुगुन, तिगुन, चौगुन प्रारंभ करने का स्थान गणित द्वारा निकालने की विधि. दुगुन, तिगुन तथा चौगुन के अतिरिक्त अन्य विभिन्न लयकारियों को ताल-लिपि में लिखने का अभ्यास

Thursday, May 3, 2018

खाली : परिभाषा

खाली -
ताल देते समय जहाँ विभाग की प्रथम मात्र पर ध्वनि न करके केवल हाथ हिलाकर इशारा कर देते हैं, उसे 'खाली' कहते हैं. अधिकतर खाली ताल के बीच की मात्र अथवा उसके आस पास हीं कहीं पड़ती है.

उदाहरनार्थ तीन ताल में ९वी मात्रा में हाथ को हवा में हिलाकर खाली दिखाया जाता है.

अन्य परिभाषाये देखें-
taali ताली 
sam सम
dhwani ध्वनि
naad नाद
vaadi-samvaadi वादी संवादी

ताली : परिभाषा

ताली -
सम के अलावा अन्य विभागों की पहली मात्रा पर जहाँ हथेली पर दुसरे हाथ की हथेली के आघात द्वारा ध्वनि उत्पन्न की जाती है, उसे ताली कहते हैं.
उदाहरनार्थ तीन ताल में १, ३, एवं ८ पर ताली दी जाती है.


अन्य परिभाषाये देखें-
taali ताली 
sam सम
dhwani ध्वनि
naad नाद
vaadi-samvaadi वादी संवादी

सम : परिभाषा

सम -
किसी भी ताल विभाग की प्रथम मात्रा पर जो ताली पड़ती  है, उसे 'सम' की संज्ञा देते हैं. गायन-वादन और नृत्य में सदा सम पर जोर देने की प्रथा है. यही वह स्थान है, जहाँ से प्रत्येक ताल का ठेका प्रारम्भ होता है.

उदाहरनार्थ तीन ताल में १ पर सम दिखाया जाता है.

अन्य परिभाषाये देखें-
taali ताली 
sam सम
dhwani ध्वनि
naad नाद
vaadi-samvaadi वादी संवादी

देशी संगीत : परिभाषा

प्राचीनकाल में संगीतज्ञों ने शाश्त्रीय संगीत को दो विभागों में बाँट दिया-
१.मार्गी संगीत
२. देशी संगीत या गान

२.देशी संगीत या गान  -
कालांतर में यह अनुभव किया गया कि ईश्वर-प्राप्ति के अतिरिक्त संगीत में मनोरंजन करने की सीमाहीन शक्ति है. तभी से मार्गी संगीत के अलावा संगीत का दूसरा रूप अर्थात देशी संगीत प्रचार में आया. देशी संगीत का उद्देश्य जन-मन रंजन है. इसमें लोक-रूचि और देश-काल के अनुसार कई परिवर्तन भी हुए हैं. और निरंतर होते रहेंगे. इसके नियम मार्गी संगीत की तरह कड़े नहीं है, और इसीलिए इसमें स्वतंत्रता भी अधिक है. मार्गी संगीत अब प्रचार में नहीं हैं.

संपूर्ण भारत में आजकल देशी संगीत का प्रचार है. भारत में देशी संगीत की दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं-
१. हिन्दुस्तानी संगीत अथवा उत्तरी भारतीय संगीत.
२. कर्णाटक संगीत अथवा दक्षिणी भारतीय संगीत.

मार्गी संगीत : परिभाषा

प्राचीनकाल में संगीतज्ञों ने शास्त्रीय संगीत को दो विभागों में बाँट दिया-
१. मार्गी संगीत
२. देशी संगीत या गान

१. मार्गी संगीत - वैदिकयुग में ऋषियों ने जब देखा कि संगीत में मन को एकाग्र करने की अत्यंत प्रभावशाली शक्ति है, तभी से इस कला का प्रयोग परमेश्वर प्राप्ति के प्रमुख साधन के रूप में करने लगे.
'ॐ' शब्द में हीं उन्हें ब्रह्म-नाद की प्राप्ति होती दिख पड़ी. संगीत का उद्देश्य ब्रह्म-नाद को अनुभव करना था. इस संगीत को कड़े नियमों में बाँधने का प्रयत्न किया गया.

भरत मुनि ने इसी ''नियम-बद्ध संगीत को जो ईश्वर-प्राप्ति का साधन माना जाता है, मार्गी संगीत कह कर पुकारा.''

Wednesday, May 2, 2018

Sharma Musical Store One Bellow 39 Keys Female Reed Linden Wood Harmonium

Material: Wood Number of Keys: 39 Two side carry handles, jaali frame on keys There might be minor colour variation between actual product and image shown on screen due to lighting on the photography