राग जयजयवंती का परिचय
वादी: रे
संवादी: प
थाट: KHAMAJ
आरोह: ऩिसारेगमप धनि॒धप मपनिसां
अवरोह: सांनि॒धपमपगमरेग॒रेसा
पकड़: रेसाध़ऩि॒रे रेग॒रेसा पगमरेग॒रे
रागांग: उत्तरांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेष: जयजयवंती राग सोरठ अंग का है। इसमें उभय गांधार एवं निषाद का प्रयोग होता है। इस राग में बिलावल, सोरठ और गौड़ मल्हार का अंग स्पष्ट मिलता है। परमेल प्रवेशक माना जाता है।
संवादी: प
थाट: KHAMAJ
आरोह: ऩिसारेगमप धनि॒धप मपनिसां
अवरोह: सांनि॒धपमपगमरेग॒रेसा
पकड़: रेसाध़ऩि॒रे रेग॒रेसा पगमरेग॒रे
रागांग: उत्तरांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेष: जयजयवंती राग सोरठ अंग का है। इसमें उभय गांधार एवं निषाद का प्रयोग होता है। इस राग में बिलावल, सोरठ और गौड़ मल्हार का अंग स्पष्ट मिलता है। परमेल प्रवेशक माना जाता है।
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